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________________ मुहूर्तराज ] [१४५ के शकुन जैसी है। यदि पाँचवें या नवें स्थान में गुरु हो तो दाहिनी ओर किसी घर पर बैठे कौए सदृश शुभ है। तीसरे भाव में गुरु चन्द्र बाईं ओर मिले कुत्तों के समान शुभसूचक शकुन हैं। दशम एकादश एवम् नवम स्थान में तो किसी भी ग्रह की स्थिति वामांग में अतिदुर्लभ पपीहे पक्षी जैसी जाननी चाहिए। यदि तृतीय स्थान में सूर्य अथवा राहु तथा शनि हो तो कुमारी कन्या, प्रौढ़ एवं सुहागिनी स्त्रियों के शकुन तुल्य सर्वसिद्धिदायी हैं। छठे तीसरे दसवें या ग्यारहवें भाव में भौम (मंगल) की स्थिति दासियों वाराङ्गना, सुरा एवं मांस के शुभसूचक शकुनों के समान सुनिश्चित लाभ दायिनी होती है। सातवें आठवें या पाँचवें भाव में गुरु या बुध, आदर्श पुष्प, मांस एवं सुरा तुल्य शुभ शकुन है। यदि लग्न से तीसरे भाव में राहु, मंगल और शनि हो तो उन्हें सामने मिले गोबर के समान शुभसूचक शकुन जाने जिससे कि शीघ्र लाभ एवं धन प्राप्ति होती है। अशुभसूचक शकुन- (मु.चि.या.प्र. श्लो. १०२, १०३ वाँ) वन्ध्याचर्म तुषास्थिसपैलवणाङ्गारेन्धनक्लीबविट्तैलोन्मत्त वसौषधारि जटिल प्रवाट तृण व्याधिताः । नग्नाभ्यक्त विमुक्तकेशपतितव्यङ्गक्षुधार्ता असृक् । स्त्रीपुष्पं सरठः स्वगेहदहनं माजरियुद्धं क्षुतम् ॥ काषायीगुडतक्रपङ्कविधवाकुब्जाः कुटुम्बे कलिः , वस्त्रादेः स्खलनं लुलायसमरं कृष्णानि धान्यानि च । कार्पासं वमनं च गर्दभरवो दक्षेऽतिरुड्गर्भिणी मुण्डादम्बिरदुर्वचोऽन्धबधिरोदक्या न दृष्टाः शुभाः ॥ अन्वय - वन्ध्या (गर्भसंभावना रहिता) चर्म, तुषम्, अस्थि, सर्पः, लवणम् अंगारः (घूमरहितोऽग्निपिण्ड:) इन्धनम्, क्लीबः, विट् (विष्ठा) तैलम्, उन्मत्तः, पीतमद्यादिक:) वसा (शरीरमांसभेदः) औषधम्, अरिः, जटिलः (जटाधरः) प्रव्राट् (संन्यासदीक्षितः) तृणम् (घासादिकम्) व्याधितः (असाध्यरोगवान्) पतितः (आचरणभ्रष्टः) व्यङ्गः (विकलांग:) क्षुधार्तः (बुभुक्षितः) असृक् (रक्तम्) स्त्रीपुष्पम् (स्त्रीरज:) सरठ: (गिरगिट इति भाषायाम्) स्वगेहदहनम् मार्जारयुद्धम् क्षुतं (छिक्का) काषायी (काषायवस्त्रवान्) गुडम् तक्रम्, पंकः, विधवा, कुब्जः कुटुम्बे कलि: (पारिवारिक कलहः) वस्त्रादेः स्खलनम् (पतनम्) लुलायसमरम् (महिषयुद्धम्) कृष्णानि धान्यानि (माषादीनि कृष्णवर्णानि धान्यानि) कार्पासम् वमनम, दक्षे (स्वदक्षिणभागे) गर्दभखः (खरशब्दः) वामभागे तु तच्छब्द: शुभः भवति, अतिरुट् (अधिक रोषः) गर्भिणी (गर्भवती स्त्री) मुण्ड: (मुण्डित शीर्षा) आर्द्राम्बरः (जेलार्द्रवस्त्रधारी) दुर्वच: (दुष्टवाक्यम् रचेन परेण वो च्चारितम् अन्ध: बधिरः, उदक्या (रजस्वला स्त्री) एते पदार्थः प्रयाणसमये दृष्टाः न शुभाः किन्तु अशुभफलदाः भवन्ति। बांझ स्त्री, चर्म, भूसा, हड्डियाँ, साँप, नमक, जलता अंगार, इन्धन, नपुंसक, विष्ठा, तेल, पागल व्यक्ति अथवा नशा किया व्यक्ति, चर्बी, दवाई, शत्रु, जटाधारी, संन्यासी, सूखी घास, असाध्यरोगी, बालक के अतिरिक्त कोई भी नग्न शरीर व्यक्ति, तेल लगाया हुआ, बिखरे बालों वाला, आचारभ्रष्ट, विकलांग, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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