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[ मुहूर्तराज -: बागरा के प्रांगण से :बागरा नगर, जिला-जालोर (राजस्थान) त्रिस्तुतिक जैन समाज का एक सुदृढ़ स्तम्भ एवं गढ़ है। प्रातः स्मरणीय गुरुदेव भगवन्त श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी से प्रतिबोधित होकर आज तक यहाँ का पूरा जैन समाज त्रिस्तुतिक आम्नाय दृढ़ अनुयायी है। समय-समय पर यहाँ त्रिस्तुतिक आचार्यों के, उपाध्यायों के व मुनिप्रवरों के चातुर्मास होते रहे हैं; और उन चातुर्मास में कुछ न कुछ विशेष कार्य अवश्य सम्पन्न हुये हैं।
वि.सं. १९६९ में पूज्य मुनिराज श्री यतीन्द्रविजयजी महाराज बाद में व्याख्यान वाचस्पति आचार्य देव श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराज ने यहाँ चातुर्मास किया। जिसमें आपश्री ने “श्री राजेन्द्रसूरि जीवन-चरित्र" लिखकर सम्पन्न किया, जो कि “जीवन प्रभा” नाम से पुस्तकाकार प्रकाशित हो चुका है। यह जीवन चरित्र “अभिधान राजेन्द्र कोष" के प्रथम भाग में प्रकाशित है।
नवरसनिधि विधुवर्षे, यतीन्द्रविजयेन वागरा नगरे
आश्विन शुक्ला दशम्यां, जीवन चरितम् व्यलेखि गुरोः
तिथि :- वि.सं. १९६९ आश्विन शुक्ला १० (विजयादशमी) इसी बागरा नगर में पूज्य उपाध्यायजी श्रीमद् गुलाबविजयजी महाराज ने वि.सं. १९७६ का चातुर्मास किया था। इस स्मरणीय चातुर्मास में आपश्री ने ज्योतिषशास्त्र के ग्रन्थ “मुहूर्तराज' की संस्कृत भाषा में श्लोकबद्ध रचना की। इस ग्रन्थ में जैन व अजैन विद्वानों के तद्विषयक ग्रन्थों के उद्धरणों का संकलन है। उपाध्यायजी ज्योतिषशास्त्र के मर्मज्ञ व पारंगत विद्वान थे। आपने इस ग्रन्थ की रचना वि.सं. १९७६ कार्तिक शुक्ला ५ (ज्ञानपंचमी) के शुभदिवस पर सम्पन्न की। .. __आधुनिक युग में संस्कृत भाषा का अध्ययन व प्रसार अल्प होने से यह आवश्यक था कि “मुहूर्तराज” जैसे जनोपयोगी ग्रन्थ को हिन्दी भाषा में अर्थ सहित तथा सविस्तार प्रस्तुत किया जाय। मुनिराज श्री जयप्रभविजयजी "श्रमण" ज्योतिष-विशारद और ज्योतिषशास्त्र के प्रकाण्ड विद्वान है। आपने इस पुण्य कार्य को वि.सं. २०३८ के भीनमाल चातुर्मास में प्रारम्भ किया। यह चातुर्मास अंचलगच्छ उपाश्रय में श्री घमण्डीरामजी केवलजी गोवानी की ओर से था। वि.सं. २०३८ में "श्री राजेन्द्र हिन्दी टीका” नाम से रोचक हिन्दी में सविस्तार लिखना शुरू कर आहोर में वि.सं. २०३९ के चातुर्मास परमपूज्य शासन-प्रभावक कविरत्न आचार्यदेव श्रीमद् विजय विद्याचन्द्रसूरीश्वरजी के पट्टधर में आपश्री ने इसे सम्पन्न किया। वि.सं. २०४० को आपका चातुर्मास पालीताना श्री राजेन्द्रविहार जैन धर्मशाला दादावाड़ी में था। वहाँ से इसे इन्दौर प्रेस में छापने के लिए दिया गया। ज्योतिष व गणित की दुरूह पुस्तक होने से छपने में कुछ विलम्ब अवश्यम्भावी था। ____ बागरा का परम सौभाग्य है कि श्री गोडी पार्श्वनाथ भव्यपूर जिनालय एवं श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरि जैन दादावाड़ी प्रासाद की शुभ छत्र छाया में अश्विन शुक्ला १० को गच्छाधिपति परमपूज्य आचार्यदेव श्री हेमेन्द्रसूरीश्वरजी, मनिराज श्री सौभाग्यविजयजी, ज्योतिष-विशारद मनिराज श्री जयप्रभविजयजी “श्रमण" आदि ठाणा ९ यहाँ चातुर्मास में विराजित हैं। ज्योतिषशास्त्र के विद्वानों और मनस्वियों के लिए अवश्य पठनीय ग्रन्थ "मुहूर्तराज-श्री राजेन्द्र हिन्दी टीका” वि.सं. २०४३ के इस स्मरणीय चातुर्मास में प्रकाशित हो रही है- यह अतीव हर्ष का विषय है।
विद्वद्जन इस गहन ग्रन्थ से लाभान्वित होंगे, और जनसाधारण को ज्योतिषशास्त्र जनित सुमुहूर्त, सुभविष्य आदि लाभों से उपकृत करेंगे - यही मंगल कामना !
बागरा, वि. सं. २०४३ श्रावण वदी ५, ___ दि. २६-७-८६
-पुखराज भण्डारी
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