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________________ मुहूर्तराज ] [१२७ अन्वय - बुधैः यत्नतः प्रयाणे कुम्भकुम्भांशको (कुम्भलग्नकुम्भनवमाँशौ) सर्वथा त्याज्यौ, तत्र प्रयातुः (प्रयाणकर्तुः) नृपतेः पदे २ अर्थनाशः। अर्थ - विद्वानों को यत्नपूर्वक कुम्भ लग्न तथा कुम्भनवांश को सर्वप्रकार से त्यागना चाहिए क्योंकि इन दोनों में प्रयाण करने वाले राजा को कदम २ पर हानि उठानी पड़ती है। नारद का मत __“निन्द्यो निखिलयात्रासु घटलग्नं घटाशंक:” अर्थात् सभी प्रकार की यात्राओं में कुम्भ लग्ने एवं कुम्भनवांशक निन्दनीय है। इसी आशय को लेकर “श्रीपति” एवं “वराह” भी कहते हैं “नेष्टः कुम्भोऽप्युदगमेंऽशस्थितो वा” अर्थात् कुम्भलग्नोदय एवं तनवांशोदय यात्रार्थ शुभ नहीं है। (श्रीपति) __ “न कुम्भलग्नं शुभमाह सत्यो न भागेभेदाद्भावना वदन्ति" अन्यान्य अनिष्टलग्न एवं इष्टफलदलग्न (मु.चि.या.प्र. श्लो. ४४) अथमीनलग्न उत वा तदंशके, चलितस्य वक्रमिह वनं जायते । जनिलग्नजन्मभपती शुभग्रहौ भवतस्तदा तदुदये शुभो गमः ॥ अन्वय - अथ मीनलग्ने इतरेऽपि लग्ने तदंशके (मीननवमांशे) वा चलितस्य (यात्रां कृतवत:) वर्त्म (मार्गः) वक्रम (कष्टपूर्णम) स्यात् जनिलग्नजन्मभपती (जन्मलग्नपति जन्मराशिपती) शुभग्रहौ यदि उदये लग्ने भवतः तदा गमः (यात्रा) शुभः (शुभफलदायिनी) भवेत्। अर्थ - मीनलग्न अथवा अन्यान्य लग्नों में भी मीन के नवांश में यात्रा करने वाले का मार्ग वक्र हो जाता है अर्थात् उसके यात्रा में अनेक आपदाएँ, कष्ट आदि होते हैं। जन्मलग्न एवं जन्मराशि के स्वामी शुभग्रह हों और वे लग्न में स्थित हों ऐसे लग्न में यात्रा करना श्रेयस्कर है। . नारद का मत “वक्र: पन्थाः मीनलग्ने यातुर्मीनांशकेऽपि वा" अर्थात् मीन लग्न में अथवा मीननवांश में यात्रा करने वाले का मार्ग कष्टप्रद रहता है। श्रीपति भी “वक्रः पन्था मीनलग्नेऽशकेवा कार्यासिद्धि: स्यान्निवृत्तिश्च तस्य" ____मीन लग्न अथवा मीन नवांश में यात्रा करने वाले का मार्ग कष्टपूर्ण हो जाता है और उसको कार्य में सफलता नहीं मिलती तथा उसका कार्य नष्ट हो जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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