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________________ मुहूर्तराज ] [१२३ ___ अर्थ - यह प्रतिशुक्र प्रतिबुध और प्रतिकुज (प्रतिमंगल) सामान्य नरों के नवीन प्रयाण में और राजाओं के लिए उनकी युद्धयात्रा में ही दोषावह है, इसके अतिरिक्त नहीं। दक्षिणशुक्र भी त्याज्य –नारचन्द्रे अग्रतो लोचनं हन्ति, दक्षिणे ह्याशुभप्रदः । पृष्ठतो वामनश्चैव शुक्रः सर्वसुखावहः ॥ ____ अर्थ - यदि शुक्र सम्मुख हो तो वह नेत्रहानि करता है और दाहिनी बाजू हो तो वह अशुभ फलदायी है, किन्तु पीठ पीछे और बाईं बाजू का शुक्र समस्तसुखदायी है। शुक्रोदयास्तदिनसंख्या-(ना.चं. टिप्पणी में) प्राच्यां भगुर्जलधितत्त्वदिनानि (२५४) तिष्ठेत् , तत्रास्तगस्तु नयनद्वि (७२) दिनान्यदृश्यः । तिष्ठेच्च पोडशकृति (२५६) दिवसान् प्रतीच्याम् अस्तं गतस्त्विह स यक्षदिनान्यदृश्यः ॥ ___ अर्थ - पूर्व दिशा में शुक्र २५४ दिनों तक उदित रहता है और फिर वहीं अस्त होकर ७२ दिनों तक अदृश्य होता है। पुनः पश्चिम में उदित होकर वहाँ २५६ दिनों तक रहता है और फिर पश्चिम में अस्त पाकर १३ दिनों तक अदृश्य हो जाता है। यात्रा में वर्जनीय पथिराहु-(मु.चि.या.प्र. श्लो. १८ वाँ) पथिराहुज्ञानार्थ पथिराहुचक्र निर्माण विधिस्युर्धर्मे दस्रपुष्योरगवसुजलपद्वीशमैत्राण्यथार्थे , याम्याजाशीन्द्रकर्णादितिपितृपवनोडून्यथो भानि कामे । वहन्यााबुध्यचित्रानि¢ति विधिभगाख्यानि मोक्षेऽथ रोहि ण्यार्येम्णाप्येन्दुविश्वान्तिमभदिनकरऑणि पथ्यादि राहो ॥ अन्वय - दस्रपुष्योरगवसुजलपद्वीशमैत्राणि (अश्विनीपुष्याश्लेषाधनिष्ठाशतभिषविशाखानुराधा-नक्षत्राणि) धर्मे स्युः (धर्मकोष्ठके लेख्यानि) अथ याम्याजाधीन्द्रकर्णादितिपितृपवनोडूनि (भरणीपूर्वाभाद्रपदाज्येष्ठाश्रवणपुनर्वसुमघास्वातिनक्षत्राणि) अर्थे (अर्थकोष्ठके लेख्यानि) अथ कामे (कामस्थाने) वह्नयााबुध्यचित्रानि:तिविधिभगाख्यानि (कृत्तिका>त्तराभाद्रपदाचित्राभिजित् मूल फाल्गुनीनक्षत्राणि) लेख्यानि ततश्च मोक्षमार्गे रोहिण्यार्यम्णाप्येन्दुविश्वान्तिमभदिनकराणि लेख्यानि। एवं कृते पथिराहुचक्रम् भवेत् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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