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________________ मुहूर्तराज ] [ १२१ इस प्रकार मु. चिन्तामणिकार तथा श्रीपति के मत हैं। इनका कथन है कि उदयवशात् जो शुक्र का सम्मुखत्व है, विशेषतया वही प्रयाणादि में त्याज्य है । इन्हीं से सहमति प्रकट करते हुए वशिष्ठ का कथन है पश्चादभ्युदिते शुक्रे यायात् प्राचीं तथोत्तराम् । प्राच्चामभ्युदिते शुक्रे प्रतीचीं दक्षिणाम् दिशम् ॥ अर्थ - यदि शुक्र पश्चिमोदित हो तो पूर्व और उत्तर दिशा में और पूर्वोदित हो तो पश्चिम और दक्षिण दिशा में जाना शुभ है। सम्मुखत्व की ही भांति शुक्र का दक्षिणस्थत्व (दाहिनी ओर रहना) भी अशुभ है यथा- " दैत्येज्यो ह्यभिमुखदक्षिणे न शस्त्रः " किन्तु यह कथन ( द्विरागमन प्रकरण में) गर्भवती, पुत्रवती एवं नवपरिणीता वधु के पतिगृह की यात्रार्थ है । प्रतिशुक्र सम्मुखशुक्र दोषफल - -नारद " मूढे शुक्रे कार्यहानिः प्रति शुक्रे पराजयः' अर्थात्-शुक्रास्त में यात्रा से कार्यहानि तथा शुक्रसम्मुखता में पराजय होती है । प्रति शुक्र का अपवाद एवं शुक्रास्त में कुछ विशेष (मु.चि.या. प्र. श्लो. ४२ वाँ ) यावच्चन्द्रः पूषभात्कृत्तिकाद्ये पादे शुक्रोऽन्धो न दुष्टोऽप्रदक्षे । मध्येमार्गं भार्गवास्तेऽपि राजा, तावात्तिष्ठेत् सम्मुखत्वेऽपि तस्य ॥ Jain Education International अन्वय - पूषभात् (रेवतीनक्षत्रात्) कृत्तिकाद्ये (कृत्तिकानक्षत्रस्य प्रथमे चरणे) यावन् ( रेवतीतः आरम्य कृत्तिकाद्यपादं यावन् समये) चन्द्रः तिष्ठेत् तावत् शुक्रः अन्धो भवेत् ( तावत् कालं शुक्रः न पश्यति) अतः स दुष्टः दोषकारकः न ( अत: रेवतीत आरम्य कृत्तिकाद्यपादपर्यन्तम् यात्रायां न दोषः ) यात्रायां मध्येमार्ग भार्गवास्तेऽपि (यदि यात्राकर्तुः मार्गमध्ये शुक्रास्त: भवेत्त्तर्हि ) राजा तावत्कालं ( यावच्छुक्रास्त:) प्रयाणमध्ये तिष्ठेत् उदितेचापि यदि सम्मुखत्वम् तदापि तावत्कालं तिष्ठेत् यावत् सः शुक्र अन्धो न भवेत् । 19 रेवतीनक्षत्र से लेकर कृत्तिका नक्षत्र के प्रथम चरण तक जब तक चन्द्रमा रहता है तब तक शुक्र अन्धा होता है, अत: वह उस काल में सामने या दाहिनी बाजू भी हो तो दोषकारक नहीं है। यात्रा करते समय यदि मार्ग के मध्य में शुक्रास्त हो जाय, तो तब तक जब तक कि वह उदित न हो यात्रा करते२ रुक जाना चाहिए और फिर शुक्रोदय होने पर ही आगे यात्रा करनी चाहिए । आगे यात्रा करते समय में भी यदि शुक्र सामने पड़े तो जब तक वह अन्ध न बने तब तक यात्रा रोकनी चाहिए। अथवा उसे पीठ पीछे करके पुनः सुमुहूर्त देखकर जाना चाहिए। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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