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________________ मुहूर्तराज ] [१०९ योगिनीफल-(स्वरोदय में ही) "जयदा पृष्ठदक्षस्था भङ्गदा वामसम्मुखी" अर्थात् यात्रार्थी के पृष्ठ तथा दक्षिण की ओर स्थित योगिनी जयदात्री होती है और सम्मुख तथा वामभाग की ओर स्थित योगिनी भंगदायिनी अर्थात् अनिष्टकारिणी होती है। अर्धप्रहर योगिनी अथवा तत्कालयोगिनी-(समरसार में) प्राक्तोयानलरक्षोवायुपाशीशदिक्षु दर्शान्तः । तिथिमिः स्थितिपदयुक्ता ह्यार्धप्रहरा तु योगिनी शस्ता ॥ ___ अर्थात् पूर्व, उत्तर, आग्नेय, नैऋत्य, दक्षिण पश्चिम, वायव्य और ईशान में प्रतिपदा से प्रारम्भ करके अमावस्या तक सभी तिथियाँ दो बार की आवृत्ति से दो-दो की संख्या में योगिनी संज्ञक है। जिस दिशा में जो तिथि योगिनी संज्ञक है वह तिथि अपने प्रारम्भ काल से १॥-१॥ घंटे तक (अर्धप्रहर) तक अपनी स्थिति दिशा से दक्षिण क्रम से निवास करती है, अर्थात् प्रत्येक दिशा में आधे-आधे प्रहर तक रहती है। इस प्रकार दिन एवं रात्रि में (अहोरात्र) प्रत्येक दिशा में २-२ बार आधे-आधे प्रहर तक इसका निवास होता है, इसे ही अर्धप्रहर योगिनी या तत्काल योगिनी कहते हैं। उदाहरण- प्रतिपदा को पूर्व में योगिनी होती है, वह योगिनी आधे प्रहर (१॥ घण्टा) तक तो पूर्व में ही रहेगी फिर क्रमश: १॥-१॥ घण्टे सभी दिशाओं में अर्थात् पूर्व, उत्तर, आग्नेय नैऋत्य, दक्षिण, पश्चिम, वायव्य और ईशान में निवास करेगी। कार्य की अत्यावश्यकता में इसका उपयोग विशेषतया किया जाना चाहिए। उक्त दोनों प्रकार की योगिनियों को भलीभाँति ज्ञात करने के लिए दो तालिकाएँ (सारणियाँ) दी जा रही हैं, जिन्हें देखकर सरलता से योगिनी विषयक जानकारी हो सकेगी। सुख और दुःख इन दोनों साधनों का विधाता और भोक्ता केवल आत्मा है और वह मित्र भी है और दुश्मन भी। क्रोधादि वशवर्ती आत्मा दुःख परम्परा का और समतादि वशवर्ती आत्मा सुख परम्परा का अधिकारी बन जाता है। अत: सुधरना और बिगड़ना सब कुछ आत्मा पर ही निर्भर है। यथाकरणी आत्मा को फल अवश्य मिलता है। जो व्यक्ति अपनी आत्मा का वास्तविक दमन कर लेता है, उसका दुनिया में कोई दुश्मन नहीं रहता। वह प्रतिदिन अपनी उत्तरोत्तर प्रगति करता हुआ अपने ध्येय पर जा बैठता है। -श्री राजेन्द्रसूरि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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