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मुहूर्तराज ]
[१०७ मध्य तृतीय भाग = मध्यह्न और अन्तिम तृतीय भाग = अपराह्न और रात्रि का प्रथम तृतीय भाग = पूर्वरात्र मध्यमतृतीय भाग = मध्यरात्रि और अन्तिम तृतीय भाग = रात्र्यन्त या निशान्त ऐसा मानना चाहिए। इस प्रकार के दिन एवं रात्रि के ३-३ भागों को मानते हुए उस समय जिन-जिन नक्षत्रों के रहते प्रयाण नहीं करना चाहिए। इस अभिप्राय को लेकर “महेश्वर" ने स्पष्ट किया है-यथा
आद्येऽह्नस्त्रिलवे ध्रुवक्षसहितैर्मिौर्न यात्रा शुभा । तो तीक्ष्णैरपरांशके न लघुमैरहस्त्रिमागेऽन्तिमे ॥ त्र्यंशे त्वादिमके निशो न मृदुमैरुप्रैर्न मध्येशके । नान्त्यांशे चरमैः करुश्रुतिमृगेज्य:ः शुभासर्वदा ॥
-यात्रा में उत्तमादि नक्षत्र ज्ञापक सारणी
यात्रा में
नक्षत्रों के नाम
उत्तम नक्षत्र
अश्वि ., मृग., पुष्य., पुन., हस्त., अनु., श्रवण., धनि., रेवती
मध्यम नक्षत्र
उ.फा., उ.षा., उ.भा., शत., मूल., ज्येष्ठा., पु.फा., पु.षा., पु.भा., रोहिणी
अधम नक्षत्र
कृतिका, स्वाती, आद्रा, विशाखा, चित्रा, आश्लेषा, मघा, भरणी
अत्यावश्यक कार्य हेतु कभी-कभी मध्यम एवं अधम नक्षत्रों में भी यात्रा करनी पड़ती है एतदर्थं व्यवस्था करते हुए मुहूर्तचिन्तामणिकार ने मध्यम तथा निषिद्ध (अधम) नक्षत्रों में से कुछ एक नक्षत्रों की आद्य घटिकाओं को छोड़कर शेष नक्षत्र भाग में यात्रा करने का विधान किया है-यथायात्रा के मध्यम, निषिद्ध, कतिपय नक्षत्रों की वर्त्य घटिकाएँ
पूर्वाग्निपित्र्यन्तकतारकाणां भूपप्रकृत्युग्रतुरङ्गमाः स्युः ।
स्वातीविशाखेन्द्रभुजङ्गमानां नाड्यो निषिद्धा मनुसम्मिताश्च ॥ अन्वय - पूर्वाग्निपित्र्यन्तकतारकाणाम् भूपप्रकृत्युग्रतु स्वाती विशाखेन्द्रभुजंगमानां मनु सम्मिताः च नाड्यो निषिद्धाः स्युः। .
अर्थ - तीनों पूर्वा, कृत्तिका, मघा, भरणी इन नक्षत्रों की क्रमश: १६, २१, ११ और ७ घड़ियों को तथा स्वाती, विशाखा, ज्येष्ठा और आश्लेषा की प्रत्येक की १४-१४ घड़ियों को त्यागकर मध्यम और निषिद्ध नक्षत्रों में भी यदि कभी अत्यावश्यकता आ पड़े तो यात्रा की जा सकती है। ये त्याज्य घड़ियाँ नक्षत्रों के आदि की ही जाननी चाहिए, क्योंकि मूल श्लोक में आदि मध्य अथवा अन्त का निर्देश नहीं है तथा आदि की घटिकाओं से अतिरिक्त घड़ियों के ग्रहण में कोई कारण भी नहीं है।
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