________________
६]
[ मुहूर्तराज पूज्य मुनिप्रवर श्री सौभाग्यविजयजी म. एवं आगम ज्ञाता व्याख्यान दिवाकर साहित्य मनिषी पूज्य मुनिराज श्री देवेन्द्र विजयजी आदि का चार्तुमास सियाणा था उस समय मैं ज्योतिष का अध्ययन कर रहा था एवं स्वास्थ्य भी बराबर नहीं था तब पूज्य आचार्य श्री के सम्मुख मुहूर्तराज की श्लोकबद्ध प्रेस कापी मुझको पूज्य मुनि श्री देवेन्द्र विजयजी म. ने दी एवं यह आदेश दिया की इसकी हिन्दी टीका कर जन साधारण के उपयोगार्थ प्रकाशित की जाय। उस समय मैंने दिन शुद्धि दीपिका का हिन्दी कार्य प्रारम्भ कर दिया था। किन्तु पूज्य वरों के आदेश व आशीर्वाद दोनों प्राप्त हो रहे थे मैंने उसी समय मुहूर्तराज की हस्त लिखित प्रति ले ली। उस समय पूज्य पाद आचार्य श्री एवं उपरोक्त दोनों ज्येष्ठ बन्धु मुनिवरों ने मेरे को साहस दिलवाया कि यह कार्य जरूर करें। हिन्दी कृति बहुत ही सुन्दर होगी। किन्तु समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता समाज के एक के बाद एक कार्य भी ऐसे आते गये कि वह कार्य सम्पन्न करवाना भी जरूरी था एवं शरीर व्याधि मन्दिर बन गया था और कुछ ही समय में एक दिन वह भी आ गया कि मुहूर्तराज के लेखन कार्य के शुभाशीर्वाद दाता व लिखने के प्रेरणा स्रोत दोनों इस असार संसार से महाप्रयाण कर गये
और अचानक एक भयंकर वज्रपात के मध्य कुछ समय व्यतीत करना पड़ा किन्तु समय-समय पर आदेश दिमाग में प्रेरणा देता रहा और पूज्यों की आज्ञा पालना यह प्रथम कर्त्तव्य समझ कर दृढ़ साहस के साथ मुहूर्तराज की हिन्दी टीका जिसका नाम श्री राजेन्द्र हिन्दी टीका रखा है लेखन कार्य प्रारम्भ किया। एवं आत्मा में यह सन्तोष है कि पूज्यों के आदेश व आशीर्वाद से यह कार्य सम्पन्न हो पाया है। ग्रन्थ कितना उपयोगी व सुन्दर बना हैं यह तो निर्णय ज्योतिष के जानकार पाठक ही कर सकेंगे।
___ मैं यह कार्य बिना बाधा के सम्पन्न करके पाठकों के कर कमलों तक पहुंच पाया हूं। यह उपरोक्त तीनों पूज्यों का हार्दिक आशीर्वाद समझ कर उनके प्रति किन शब्दों में आभार मानूं यह समझ से परे है। मैं उन का कृतज्ञ हूँ एवं चरण वन्दन कर इस विषय को यही पूर्ण करूं यही हार्दिक भावना।
भण्डार से सुरक्षित ४८ वर्षीय संस्कृत पत्र जिर्ण हो गये थे। जिसकी स्पष्ट प्रेस कापि श्लोकबद्ध गुरुणी परम त्यागी तपस्वी श्री हेतश्रीजी की शिष्या एवं परम विदूषी विद्वान रत्ला आर्या गुण सम्पन्न गुरुणीजी श्री मुक्तिश्रीजी की आज्ञानुवर्ति सुन्दर लेखिका साध्वीजी श्री जयन्तश्रीजी ने श्रम पूर्वक तैयार कर दी एतदर्थ आभार। ___मुहूर्तराज जब टीका रूप में तैयार हो गया दिल में विचार आया क्यों न ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान से इसका सम्पादन करवा लिया जाय यह विचार भी शीघ्र ही कार्य रूप में परिणित हो गया और हरजीराजस्थान निवासी मेरे पूज्य गुरुदेव व्याख्यान वाचस्पति जैनाचार्य श्रीमद्विजय यतीन्द्र सूरीश्वरजी महाराज के चिर परिचित एवं पूज्य गुरुदेव श्री के आदेश से महावीर जैन पंचाग के कर्ता के सुपुत्र पण्डित श्री गोविन्दरामजी द्विवेदी व्याकरण शास्त्री साहित्याचार्य से मेरा भीनमाल में मुनिवरों को अध्ययन करवाने आये हुए थे तब परिचय हुआ। उस समय मैंने पण्डितवर्य से वार्तालाप किया एवं पण्डितवर्य ने यह श्रम करना स्वीकार कर इस मुहूर्तराज के सम्पादन कार्य में काफी समय व श्रम कर यह कृति सुन्दर से सुन्दर बनाने का प्रयास किया एतदर्थ आभार।
ग्रन्थ सभी दृष्टि से सुन्दर बने इस उद्देश्य से उन प्रत्येक परोक्ष व
दान प्रदाता सहयोगियों के प्रति स्मरण
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org