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________________ मुहूर्तराज ] [७७ (५) अथ यामित्र दोष- (मु. चिन्ना वि.प्र.श्लो.सं. ६७वाँ) लग्नाच्चन्द्रान्मदनभवनगे खेटे न स्यादिह परिणयनम् । किंवा बाणाशुगमितलवगे जामित्रं स्यादशुभकरमिदम् ॥ अन्वय - लग्नात् (विवाहलग्नात्) चन्द्राद् वा मयनभवनगे खेटे (सति) इह परिणयनं न स्यात्। किंवा (पूर्वग्रहाधिष्ठितराशेः) सप्तमराशिस्थितत्रिंशद् भागालके अग्नेऽपि चन्द्रः निषिद्धः। अर्थात् सप्तमस्थानस्थितराशिगतग्रहाद् यदि बाणाशुगमिते नवांशे चन्द्र: स्यात् तर्हि जामित्रं स्यात्। यथा-सप्तमे भौम: मेषराशिपंचमनवांशेऽस्ति चन्द्रश्च लग्ने तुलाराशिपंचमनवांशेऽस्ति तदा जामित्रम् । __ अर्थ - विवाह लग्न से अथवा चन्द्रमा से सप्तमस्थान में यदि कोई भी ग्रह तो परिणयन अर्थात् विवाह कर्म न करें। अथवा सप्तमस्थान में स्थित ग्रह से ५५ वें नवांशक चन्द्र हो तो भी विवाह कर्म न करें अन्य ५६ वें से ६३ वें तक से आठ नवमांक शुभकारक है। यह सूक्ष्म जामित्र दोष है। यह अतिशुभकारक यामित्र फल-लल्लाचार्य के मत से उद्वाहे विधवा व्रते च मरणं शूलं च पुंस्कर्मणा । यात्रायां विपदो गृहेषु दहनं क्षौरेऽपि रोगो महान् ॥ अर्थ - यदि जामित्र दोष में विवाह करें, तो स्त्री विधवा हो, व्रत करें तो मरण या मरणतुल्य कष्ट हो, पुंसवन संस्कार करें तो शूल उत्पन्न हो, यात्रा में विपदाएँ हों, गृहकर्म (निर्माण, प्रतिष्ठादि) करें तो अग्निमय और मुण्डन संस्कार में महान् रोग हो। जामित्र के विषय में- (शी.बो.) चन्द्र, गुरु, बुध, शुक्र से यदि जामित्र दोष हो तो शुभ किन्तु मंगल, शनि, राहु और केतु से उत्पन्न जामित्र दोष अशुभ है। यथा चन्द्रश्चान्द्रि गुर्जीवो जामित्रे शुभकारकाः । स्वर्भानुभानुमन्दारा जामित्रे न शुभप्रदाः ॥ (६) पंचकाख्य वाणदोष - प्राच्यमत से अपवाद सहित (मु.चि.वि.प्र. श्लो. ७३वाँ) रसगुणशशिनागाब्याढ्यसक्रान्तियातांशकमितिरथेतेष्टांकैर्यदा पंच मेषाः । रूगनलन्टपचौरा मृत्युसंज्ञश्च बाणः । नवतशरशेषे शेषकैक्ये सशल्यः ॥ अन्वय - रसगुणशशिनागाब्ध्याढ्यसंक्रातियातांचकमितिः यदा अंकैस्तष्टा तत्र यदि पञ्च शेषाः तदा रूगनलन्टपचौरा मृत्युसंज्ञश्च बाणः (यानि प्राग् आगतानि शेषाणि तेषामैक्ये) नवहतशरशेषे सति स बाण: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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