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________________ ४२ ] कुलिक दिन के समय में कुलिक मुहूर्त रात्रि के समय में कुलिक मुहूर्त संवर्तयोग - नारद मत में वार → यमघंट योग- गर्ग मत से अथ कुलिक योग ज्ञापक चक्र रवि सोम मंगल बुध १४ - १३ १२ Jain Education International ११ १० ९ ८ ७ गुरु ६ सप्तम्यामकंवारश्चेत् प्रतिपत् सौम्यवासरे । संवर्तयोगो विज्ञेयः शुभकार्यविनाशकृत ॥ ५ मघा विशाखा चार्द्रा च मूलमृक्षं च कृत्तिका । रोहिणी हस्त इत्येवं यमघंटः क्रमाद् रवेः ॥ शुक्र अर्थ - सप्तमी को रवि एवं प्रतिपदा को बुधवार होने पर संवर्त नामक योग बनता है, जो कि शुभकार्य विनाशकारी है। विन्ध्यस्योत्तरभागे तु, यावदातुहिनाचलम् । यमघंटकदोषोऽस्ति, नान्यदेशे कदाचन ॥ ४ For Private & Personal Use Only ३ [ मुहूर्तराज अर्थ रवि को मघा, सोम को विशाखा, मंगल को आर्द्रा, बुध को मूल, गुरु को कृत्तिका, शुक्र को रोहिणी, शनि को हस्त होने पर यमघंट योग बनता है । यमघंट योग का अपवाद गर्ग शनि १ अर्थ - विन्ध्याचल से हिमाचल पर्यन्त भाग में ही यमघंट दोष त्याज्य है, अन्य देश में नहीं । लग्नाच्छुभग्रहः केन्द्रे त्रिकोणे वा स्थितो यदि । चन्द्रो वापि न दोषः स्याद् यमघण्टकसंभवः ॥ अर्थ लग्न से केन्द्र स्थान में अथवा त्रिकोण स्थान में कोई शुभ ग्रह अथवा चन्द्रमा स्थित हो तो यमघण्टक से उत्पन्न दोष नहीं लगता । कुछेक आचार्यों का मत है कि यमघंट योग की आद्य ८ घड़ियाँ ही शुभ कृत्य में छोड़नी चाहिए यथा" यमघंटे त्यजेदष्टौ मृत्योर्द्वादिश नाडिकाः" (दीपिकायाम्) अर्थात् यमघंट की ८ और मृत्युयोग की १२ घड़ियाँ त्याज्य हैं। www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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