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________________ ३२ ] [ मुहूर्तराज अन्वय - कीटमेषयोः वृषजूकयोः, कर्किचापभयोः, मीनसिंहयोः, मृगयुग्मयोः, कन्यकाकुंभयोः (षट्काष्टकं) मित्रषट्काष्टकम् (ज्ञेयम्) अन्यत् (एतद्राश्यतिरिक्तश्योः षटकाष्टकम्) प्रयत्नाद् विवर्जयेत्। अन्वय - मेष और वृश्चिक का, वृष और तुला का, कर्क और धनु का, मीन और सिंह का, मकर और मिथुन का, कन्या और कुंभ का षटकाष्टक मित्र षटकाष्टक कहा जाता है, यह शुभ है। अन्य प्रकार से यदि षट्काष्टक हो तो उसे अवश्य ही त्यागना चाहिए। राशिकूट के विषय में विशेष - ज्योति प्रकाश में - पुंसो गृहात् सुतगृहे सुतहा च कन्या, धर्मे स्थिता धनवती पतिवल्लभा च । . द्विादशे धनगृहे धनहा च कन्या, रिःफे स्थिता धनवती पतिवल्लभा च ॥ अन्वय - नवपंचमें पुंसः (पुरुषस्य) गृहात् (राशेः) सुतगृहे (यदि स्त्रियाः राशिः पञ्चमः भवेत् तदा) (वधूः) सुतहा (पुत्रनाशकी) स्यात्, धर्मे स्थिता (यदि पुरुषराशेः कन्यायाः राशिः नवमः स्यात्तदा) धनवती पतिवल्लभा च स्यात्। एवं द्विद्वदिशे पुंसः राशेः स्त्रीराशिः द्वितीय स्तर्हि सा स्त्री धनहा अथ पुंसः राशेः स्त्रियाः राशिः द्वादशस्तदा सा स्त्री धनवती पतिवल्लभा च भवेत्। अर्थ - नवपंचक में यदि वर की राशि से वधू की राशि पाँचवीं हो तो वह वधू पुत्रनाशकारिणी होती है और वर की राशि से वधू की राशि नवीं हो तो वह स्त्री धनवती और पति को प्रिय लगती है। द्विादश में यदि पुरुष की राशि से स्त्री की राशि दूसरी हो तो वह स्त्री धननाश करती है और यदि वर की राशि से वधू की राशि बारहवीं हो तो वह वधू धनवती तथा पति को प्यारी लगने वाली होती है। नवपंचक के विषय में - शार्ङ्गधरीय में शुक्तमत - मीनालिभ्यां युते कीटे, कुंभे मिथुन संयुते । मकरे कन्यकाक्ते न कुर्यान्नवपञ्चमे ॥ अन्वय - मीनालिभ्यां युते कीट, मिथुनसंयुते कुंभे, कन्यकायुक्ते च मकरे, एतादृशे नवपंचमे (विवाह) न कुर्यात्। अर्थ - मीन और कर्क के, वृश्चिक और कर्क के, मिथुन और कुंभ के कन्या और मकर के नव पंचम में विवाह नहीं करना चाहिए। द्विादशं - जगन्मोहन में और कश्यप के मत - द्विादशं शुभं प्रोक्तं मीनादौ युग्मराशिषु । मेषादौ युग्मराशौ तु निर्धनत्वं न संशयः ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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