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________________ २९४ ] तीर्थकर है) विनाश होने पर सूक्ष्मत्व गुण प्रगट होते हैं । इन अनुजीवी तथा प्रतिजीवी गुणों से समलंकृत यह सिद्ध पर्याय है। इसे स्वभाव-द्रव्यव्यजन-पर्याय भी कहा है । पालाप-पद्धति में लिखा है 'स्वभाव-द्रव्यव्यंजन-पर्यायाश्चरमशरीरात्-किंचित-न्यून-सिद्धपर्यायः' (पृष्ठ १६६) कैलाशगिरि पर चतुर्विशति जिनालय भगवान ऋषभदेव के निर्वाण के कारण कैलाश पर्वत पूज्य स्थल बन गया । चक्रवर्ती भरत ने उस पर्वत पर अपार वैभवपूर्ण जिन मंदिर बनवाए थे। उन मंदिरों की रक्षार्थ अजितनाथ भगवान के तीर्थ में उत्पन्न सगर चक्रवर्ती के पुत्रों ने आसपास खाई खोदकर उसे जल से भरा था । उत्तरपुराण में कहा है : राज्ञाप्याज्ञापिता यूयं कैलासे भरतशिना। गृहा कृता महारत्नश्चतुर्विंशतिरर्हताम्॥१०७॥ तेषां गंगां प्रकुर्वीध्वं परिखां परितो गिरिम् । इति तेपि तथा कुर्वन् दंडरत्नेन सत्वरम् ॥१०८॥ अध्याय १ चक्रवर्ती सगर ने अपने पुत्रों को प्राज्ञा दी, कि महाराज भरत ने कैलाश पर्वत पर महारत्नों के अरहंत देव के चौबीस जिनालय बनवाए हैं। उस पर्वत के चारों ओर खाई के रूप में गंगा का प्रवाह बहा दो। यह सुनकर उन राजपुत्रों ने दण्डरत्न लेकर शीघ्र ही उस काम को पूर्ण कर दिया । ___ गुणभद्र आचार्य ने यह भी कथन किया है कि राजा भगीरथ ने वैराग्य उत्पन्न होने पर वरदत्त पुत्र को राज्यलक्ष्मी देकर कैलाश पर्वत पर जाकर शिवगुप्त महामुनि के समीप जिन दीक्षा ली और और गंगा के किनारे ही प्रतिमायोग धारण किया । गंगा के तट से ही उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया था। इन्द्र ने आकर क्षीरसागर के जल से भागीरथ मुनि के चरणों का अभिषेक किया था। उस अभिषेक का जल गंगा में मिला; तब से ही यह गंगा इस संसार में तीर्थ रूप में पूज्य मानी जाती है । गुणभद्रचार्य कहते हैं : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001932
Book TitleTirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherTin Chaubisi Kalpavruksh Shodh Samiti Jaipur
Publication Year1996
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & philosophy
File Size17 MB
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