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शास्त्रज्ञ डाक्टर राधाकृष्णन ने लिखा है :--"यजुवद में सीर्थकर ऋषभदेव, अजितनाथ तथा परिष्टनेमि का उल्लेख पाता है । भागवत् पुराण ऋषभदेव को जैनधर्म का संस्थापक मानता है।" (१)
भागवत पुराण के अनुसार ऋषभदेव विष्णु नामसे नवमें अवतार थे। यह अवतार वामनावतार, राम, कृष्ण तथा बुद्ध रूप अवतारों के पूर्व हुआ है। विद्यावारिधि बैरिस्टर चंपतरायजी ने लिखा है : अवतार की गणना में वामन अवतार पंद्रहवां है । ऋग्वेद में वामन अवतार का उल्लेख है। इससे यह परिणाम निकलता है कि वामन अवतार सम्बन्धी मंत्र की रचना के पूर्व ऋषभदेव हुए हैं। ऋग्वेदोक्त वामन अवतार के पहले ऋषभावतार हुआ है, अतः ऋषभावतार ऋग्वेद के बहुत पहले हुआ है यह स्वीकार करना होगा । श्रीपतरायजी का उपरोक्त भार इन शब्दों द्वारा व्यक्त किया गया है :---
According to Bhagvata Purana Rishabhadeva was the ninth Avatara ( incarnation ) of Vishnu and preceded the Vamana or Dwarf, Rama, Krishna and Buddha, who are also regarded as Avatars. Now since the Vamana Avatara, the fifteenth in the order of enumeration is expressly referred to in the Rig Veda, it follows that it must have priority in point of time to the composition of the hymn that refers to it and inasmuch as Shri Rishabha Deva Bhagwan even preceded the Vamana Avatara, he must have flourished still earlier (practical Path pp. 193-194).
(1) "Yajurveda mentions the names of three Tirthankaras-Rishabha, Ajitnath and Arishtanemi. The Bhagvat Puran endorses the view that Rishabhadeo was the founder of Jainism." Indian Philosophy Vol. I, P. 237.
भागवतपुराण में चौबीस अवतारों के नाम इस प्रकार पाये जाते हैं :-- (१) नारायण (२) ब्रह्मा (३) सनत्कुमार (४) नर-नारायण (५) कलि (६) दत्तात्रेय (७) सुयज्ञ (८) हयग्रीव (६) ऋषभ (१०) पृथु (११) मत्स्य (१२) कूर्म (१३) हंस (१४) धन्वेसरि (१५) वामनावतार (१६)परशुराम (१७) मोहिनी (१८) नृसिंह (१६) घेद ग्यास (२०) व्यास (२१) बलराम (२२) कृष्ण (२३) बुद्ध (२४) कल्कि (भा० पु. १, २, ७)।
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