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________________ तीर्थंकर [ २०१ तिलोयपण्णति में यह भी कहा है कि ''गणधर, इन्द्र तथा चक्रवर्ती के प्रश्नानुरूप अर्थ के निरूपणार्थ यह दिव्यध्वनि शेष समयों में भी निकलती है । यह भव्य जीवों को छह, द्रव्य, नौ पदार्थ, पाँच अस्तिकाय और सात तत्वों का नाना प्रकार के हेतुओं द्वारा निरूपण करती है" (भाग १, पृष्ठ २६३) । शंका गोम्मटसार के कथनानुसार मध्यरात्रि को दिव्यध्वनि खिरने पर यह शंका की जा सकती है कि मध्यरात्रि को तो जीव निद्रा के वशीभूत रहते हैं, उस समय उस दिव्यवाणी के खिरने से क्या उपयोग होगा? समाधान समवशरण में भगवान के प्रभामंडल के प्रभाव से दिन और रात्रि का भेद नहीं रहता । वहाँ निद्रा की बाधा भी नहीं होती। ___ मुनिसुव्रतकाव्य में लिखा है :-- स्त्री-बाल-वृद्धनिवहोपि सुखं सभा तामंतर्मुहूर्तसमयांतरतः प्रयाति । निर्याति च प्रभु-माहात्म्याऽश्रितानां निद्रा-मृति-प्रसव-शोक-रजादयो न॥ स्त्री, बालक, तथा वृद्ध समुदाय उस समवशरण में अंतमहूर्त के भीतर ही आनन्दपूर्वक आते थे तथा जाते थे; अर्थात् सभी जीव वहाँ सुखपूर्वक शीघ्र आते जाते थे। भगवान तीर्थंकर प्रभु के माहात्म्य से समवशरण में आने वालों को निद्रा, मृत्यु प्रसव तथा शोक रोगादिक नहीं होते थे । तीर्थंकर के गुण भगवान के अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त सुख तथा अनन्तवीर्य रूप अनन्त चतुष्टय पाए जाते हैं । इस प्रकार दस जन्मतिशय, दस केवलज्ञान के अतिशय, चतुर्दश देवकृत अतिशय, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001932
Book TitleTirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherTin Chaubisi Kalpavruksh Shodh Samiti Jaipur
Publication Year1996
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & philosophy
File Size17 MB
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