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________________ तप-कल्याणक ६४-१५७ काल लब्धि, सिंह का भाग्य, लोकांतिकों द्वारा वैराग्य समर्थन, दीक्षा कल्याणक का अभिषेक, दीक्षापालकी, तपोवन, दीक्षाविधि, केशलोंच, महामौन व्रत, निश्चय दृष्टि, बहिर्दृष्टि, जीवन द्वारा उपदेश, आध्यात्मिक साधना में निमग्नता, आत्मज्ञान, मनः पर्ययज्ञान, वीतराग वृत्ति, स्वावलम्बी-जीवन, मोक्ष पथ, दीर्घ तपस्या, बाह्यतप का साधनपना, ऋद्धियों की प्राप्ति, कायक्लेश की सीमा, अंतराय का उदय, हस्तिनापुरी में आगमन, श्रेयांस राजा का स्वप्न, इक्षुरस का दान, दान-तीर्थकर, पारणा का काल, निमित्त कारण, क्या दूध सदोष है, दान का फल, सत्पात्र दान, अनुमोदना का फल, अवर्म से पतन, सत्पुरुषों की निंदा से पाप, चेतावनी, निंदनीय प्रवृत्ति, शरीर निग्रह द्वारा ध्यानसिद्धि, भगवान की वृत्ति, प्रभु का मोह से युद्ध, अंतर्युद्ध, क्षीणमोह गुणस्थान, विचारणीय विषय, घातियात्रय का क्षय, मार्मिक समीक्षा, जैनविचार, केवलज्ञान का समय, अर्हन्तपद । ज्ञान-कल्याणक १५८-२५६ समवशरण, मानस्तंभ रूप विजय-स्तम्भ, द्वादश सभा, श्रीमंडप, पीठिका, गंधकुटी, सिंहासन, मंडल रचना, इन्द्र द्वारा स्तुति, समवशरण का प्रभाव, वापिकाओं का चमत्कार, स्तूप, भव्यकूट, समवशरण की सीढ़ियाँ, जन्म के अतिशय, दया का प्रभाव, चतुराननपने का रहस्य, देवकृत अतिशय, कमल रचना, विहार की मुद्रा, धर्मचक्र, प्रातिहार्य, पुष्प-वर्षा, दुंदुभिनाद, चमर, छत्र, दिव्यध्वनि, अशोक तरु, सिंहासन, प्रभामंडल, साधि मागधीभाषा, लोकोत्तर वागी, अनक्षरात्मक ध्वनि, दिव्यध्वनि का काल, तीर्थंकर के गुण, निर्विकार-मुद्रा, अर्हन् की प्रसिद्धि, अरिहंत का वाच्यार्थ, अरिहंत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001932
Book TitleTirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherTin Chaubisi Kalpavruksh Shodh Samiti Jaipur
Publication Year1996
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & philosophy
File Size17 MB
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