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________________ १३८ ] तीर्थंकर हैं, वे भी सुफल को प्राप्त करते हैं । भगवान वृषभनाथ के जीव ने राजा वज्रजंघ की पर्याय में जो चारण मुनियुगल को आहारदान दिया था, उनकी अनुमोदना नकुल, सिंह, वानर तथा शूकर के जीवों ने की थी, उस अनुमोदना के कारण वे चारों जीव उत्तम भोगभूमि में उत्पन्न हए थे। महापुराण में बताया है कि इन पशों को जातिस्मरण हो गया था। इससे उनके भाव संसार से बहुत ही विरक्त हो गए थे । चारणमुनि दमधर स्वामी ने भगवान ऋषभदेव के जीव वज्रजंघ से कहा था :-- भवद्दानानुमोदेन बद्धायुष्काः कुरुष्वमी। ततोऽमीभी तिमुत्सृज्य स्थिता धर्मश्रवाथिनः॥८--२४३॥ राजन् ! आपके दान की अनुमोदना करने से इन नकुल, वानर, सिंह तथा शूकर ने उत्तम भोगभूमि की आयु बंध किया है, इस कारण ये धर्म श्रवण करने की इच्छा से यहाँ निर्भय होकर बैठे हैं : इतोष्टमे भवे भाविन्यपुनर्भवतां भवान् । भविताऽमी च तत्रैव भवे सेत्स्यन्त्यसंशयम् ॥२४४॥ इस भव से आगामी आठवें भव में तुम तीर्थंकर वृषभनाथ होकर मोक्ष प्राप्त करोगे और उसी भव में ये सब भी निश्चय से सिद्ध होंगे। श्रीमती च भवर्तीथे दानतीर्थप्रवर्तकः। श्रेयान् भूत्वा परंश्रेयः श्रयिष्यति न संशयः ॥२४६॥ श्रीमती का जीव भी आपके तीर्थ में दानतीर्थ का प्रवर्तक राजा श्रेयांस होकर उत्कृष्ट कल्याण रूप मोक्ष को प्राप्त करेगा इसमें संशय नहीं है। इस वर्णन से धर्मात्मा व्यक्ति की समझ में यह बात प्रा जायेगी कि पात्रदान तथा उसकी अनुमोदना के द्वारा वज्रजंघ, श्रीमती तथा सिंह आदि ने महान् पुण्य का बंध करके भोगभूमि आदि में अपूर्व सुख भोग और क्रमशः उन्नति कर उन सबने मोक्ष-पदवी प्राप्त की, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001932
Book TitleTirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherTin Chaubisi Kalpavruksh Shodh Samiti Jaipur
Publication Year1996
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & philosophy
File Size17 MB
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