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________________ रद श्री कवि किशनसिंह विरचित १ए चाख्यों इकसे कहे, यामें फेर न सार । अति लंपट जिह्वा तणो, लोलुप चित्त अपार ॥१६४॥ चौपाई हटवातणों चून अरु दाल, व्रतधर इनको खावो टाल । बींधो अन्न पीस दल ताहि, दया रहित बेंचत है जाहि ॥१६५॥ जीव कलेवर थानक सोय, चलते हू ता मांहे होय । परम विवेकी है सो मही, मांस दोष लख त्यागे सही ॥१६६॥ नीच लोक घरको घृत दुग्ध, तजहु विवेकी जाण अशुद्ध । सांडि दूध दोहत तै लेय, तातो होय तहां सो देय ॥१६७॥ निंद्य वस्तु तिन उपमा इसी, कहिये मांस बराबर जिसी । आमिषकी उपमा इह वीर, जैसो सांढि तणो है खीर ॥१६८॥ यातें सांढि दूधको तजो, मांस तजन व्रत निहचै भजो । संख तणों चूनो गोमूत्र, महा निंद्य भाषो जिनसूत्र ॥१६९॥ कालिंगडा घिया तोरइ, कदू बेल रु जामा निइ । इत्यादिक फल काय अनन्त, तिनको तजिये तुरत महंत ॥१७०।। कोई यह कहे कि जो भोजन सामने है उसे खा लूँ, अन्य नहीं ग्रहण करूँगा; तो उसके ऐसा कहनेमें कोई अन्तर नहीं है और न कुछ सार ही है। वह जिह्वाका अत्यन्त लोभी और मनका अपार लोलुप-सतृष्ण है ॥१६४॥ बाजारका जो आटा दाल है, व्रती मनुष्यको इनका त्याग करके भोजन करना चाहिये। क्योंकि निर्दय मनुष्य घुने हुए अन्नको पीस कर तथा दाल बना कर बेचते हैं ॥१६५।। बाजारका आटा दाल जीवशरीरोंका स्थान है, कभी कभी उसमें चलते-फिरते जीव दिखाई देते हैं इसलिये जो पृथिवी पर परम विवेकी जीव हैं वे मांसका दोष जानकर बाजारका आटा, दाल छोड़ें ॥१६६॥ इसके सिवाय विवेकी जन अशुद्ध जानकर नीच लोगोंके घरका घी और दुध छोड़ें। नीच जन दूध दोह कर उसकी साढ़ी (मलाई) निकाल लेते हैं तथा उसे गर्म स्थान पर रख देते हैं। नीच मनुष्योंके दुधको निंद्य वस्तुकी उपमा दी जाती है। वह मांसके बराबर कहा जाता है। इसलिये उस दूधको छोड़ो और निश्चयसे मांस त्याग व्रतको धारण करो। इसके सिवाय शंखका चूना और गोमूत्र जिनागममें महा निन्दनीय कहा गया है ॥१६७१६९।। कलींदा (तरबूज), घिया (लौंकी), तोरई, कद् (कुम्हड़ा), बेल, जामुन और निबोरी १ अतीचार इनके कहे स० २ हाट तनौ चून अरु दार ३ सांढि स० सांझि न० ४ इसा दूधको तजो न० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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