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________________ ३१२ श्री कवि किशनसिंह विरचित इह कथा संस्कृत केरी, भाषा रचिह्नों शुभ बेरी । कछु अवर ग्रंथतें जानी, नानाविध किरिया आनी ॥१९२२॥ धर क्रियाकोष तिस नाम, पूरण करिहो अभिराम । जिम मूढ समुद्र अवगाहैं, निज भुजतै उतरो चाहै ॥१९२३॥ गिरिपरि तरुको फल जानी, कुबजक मनि तोरन ठानी । शशि नीर कुण्डके मांही, करतें शशि-बिंब गहाही ॥१९२४॥ तिम सज्जन मुझको भारी, हँसिहै संशय नहि कारी । बुधजन मो क्षिमा करीजै, मेरो कछु दोष न लीजै ॥। १९२५ ॥ जो अशुद्ध होय पद याही, शुध करि पढियो भवि ताही । अधिको नहि कहनो जोग, बुध जनको यही नियोग ।। १९२६॥ अडिल्ल किसनसिंह इह अरज करै सब जन सुनो, कर मिथ्यातको नाश निजातम पद मुनो; क्रिया सहित व्रत पाल करण वश कीजिये, अनुक्रम लहि शिवथान शाश्वतो जीजिये || १९२७|| सवैया इकतीसा सत्रह सौ सम्वत, चौरासी या वर्षा रितु स्वेत तिथि पून्यो रविवार है, भादौं मास यह कथा संस्कृतमें हैं परन्तु मैंने भाषामें रची है । संस्कृत कथा ग्रंथसे तथा कुछ अन्य ग्रन्थोंसे सार लेकर इस ग्रंथकी रचना की है । इस मनोहर कथाको 'क्रियाकोष' नामसे पूर्ण किया है । जिस प्रकार कोई अज्ञानी समुद्रमें प्रवेशकर भुजाओंसे उसे पार करना चाहे, अथवा कोई बौना पुरुष पर्वत पर खड़े वृक्षका फल तोड़ना चाहे अथवा कोई जलके कुण्डमें पड़ते हुए चन्द्रमाके बिम्बको हाथसे पकड़ना चाहे तो उसकी लोग हँसी करते हैं उसी प्रकार सज्जन पुरुष मेरी हँसी करेंगे, इसमें संशय नहीं हैं । इसलिये मैं विद्वज्जनोंसे प्रार्थना करता हूँ कि वे मुझे क्षमा करे, मेरे दोषोंको ग्रहण न करें। जो पद इसमें अशुद्ध हो उसे भव्यजन शुद्ध कर पढ़े । अधिक कहना योग्य नहीं हैं, क्योंकि विद्वज्जनोंका यही नियोग है ।।१९२२-१९२६॥ किशनसिंह यह अर्ज करते हैं कि हे जीवों ! सुनो । सब लोग मिथ्यात्वका नाश कर निज आत्मपदको पहचानो, क्रिया सहित व्रतोंका पालन कर इन्द्रियोंको वशमें करो तथा अनुक्रमसे मोक्षपद प्राप्त कर सदा जीवित रहो अर्थात् अजर अमर पदको प्राप्त करो ॥१९२७ ॥ सत्रह सौ चौरासी संवत, वर्षाऋतु, भाद्र मास, पूर्णिमा तिथि, रविवार दिन, शतभिषा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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