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श्री कवि किशनसिंह विरचित तीर्थङ्कर चौबीसके, गरभ कल्याणक सार । तिथि उपवास तणी सुनो, करिये तिस मन धार ॥१८२२॥
गर्भकल्याणक व्रत
पद्धरी छन्द दोयज असाढ वदि वृषभधीर, छठि वासुपूज्य सुदि छठि जु वीर । मुनिसुव्रत सांवण दुतिय श्याम, दसमी कारि जिन कुंथुनाम ॥१८२३॥ सित दोयज सुमति सुगरभ एव, भादों वदि सातै सांति देव । सुदि छठि सुपारस उदर मात, नमि वदि कुंवारि दोयज विख्यात ।।१८२४॥ कातिक वदि पडिवा जिन अनन्त, सुदि छठि नेमि प्रभु सुर महन्त । पद्मप्रभु वदि छठि माघ मास, फागुण वदि नौमी सुविधि भास ॥१८२५।। अरनाथ सुकल तृतिया बखाण, आठै संभव उर मात ठाण । शशिप्रभ वदि पाँचै चैत एव, आठै सीतल दिन गरभमेव ॥१८२६॥ सुदि एकै जिनवर मल्लि जानि, वदि तीज पार्श्व वैशाख मानि । सुदि छठि अभिनंदन गरभवास, जिन धर्मनाथ तेरसि प्रकास ॥१८२७॥ श्रेयांस जेठ वदि छठि गरीस, दशमी दिन उच्छव विमल ईश ।
जिन अजित अमावसि उदर मात, चौबीस गरभ उत्सव विख्यात ॥१८२८॥ अनुसार करता हूँ॥१८२१॥ सर्व प्रथम चौबीस तीर्थंकरोंके गर्भकल्याणक संबंधी उपवासोंकी तिथियोंका वर्णन करता हूँ उसे मन स्थिर कर सुनो ॥१८२२॥
गर्भकल्याणककी तिथियाँ-आषाढ़ वदी द्वितीया वृषभदेवकी, आषाढ़ सुदी षष्ठी वासुपूज्य और महावीरकी, श्रावण वदी द्वितीया मुनिसुव्रतनाथकी, श्रावण वदी दशमी कुन्थुनाथकी, श्रावण सुदी द्वितीया सुमतिनाथकी, भादों वदी सप्तमी शांतिनाथकी, भादों सुदी षष्ठी सुपार्श्वनाथकी, कुंवार (आसोज) वदी द्वितीया नमिनाथकी, कार्तिक वदी पडिवा अनन्तनाथकी, कार्तिक सुद षष्ठी नेमिनाथकी, माघ वदी षष्ठी पद्मप्रभुकी, फागुन वदी नवमी सुविधिनाथकी, फागुन सुद तृतीया अरनाथकी, फागुन सुदी अष्टमी संभवनाथकी, चैत्र वदी पंचमी चंद्रप्रभकी, चैत्र वद अष्टमी शीतलनाथकी, चैत्र सुदी पडिवा मल्लिनाथकी, वैशाख वदी तृतीया पार्श्वनाथकी, वैशाख सुदी षष्ठी अभिनन्दननाथकी, वैशाख सुदी त्रयोदशी धर्मनाथकी, जेठ वदी षष्ठी श्रेयांसनाथकी, जेठ वदी दशमी विमलनाथकी और जेठ वदी अमावास्या अजितनाथकी गर्भकल्याणक तिथि प्रसिद्ध है ॥१८२३-१८२८॥ इस प्रकार चौबीस तीर्थंकरोंकी गर्भकी तिथियाँ कही। अब हे भव्यजनों! मन स्थिर कर उनकी जन्मतिथियाँ सुनो ॥१८२९॥
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