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________________ श्री कवि किशनसिंह विरचित महा मण्डलेश्वरको राज, आसन चामर 'छतर समाज । भूप चिह्न धरि सभा जुराय, बैठो अब सुनिये जो थाय ॥२१॥ ढाल चाल इक दिवस मध्य वनमांही, भ्रमतो वनपालक आंही । निज संबंधी परजाय, जिय वैर विरुद्ध जु थाय ॥२२॥ ते एक खेत्रके मांही, ढिग बैठे केल करांही । घोटक महिष इक जागा बैठे २धरि चित्त अनुरागा ॥२३॥ मूषाकों हरष बिलावा हियमें गहि प्रीत खिलावा । अहि नकुल दुहूं इक ठांही मैत्रीपन अधिक करांही ॥२४॥* इत्यादिक जीव अनेरा निज वैर छांडि है भेरा । बैठे लखिकै. वनपाला अचरज चिंता धरि चाला ॥२५॥ मनमांहि विचारै एम, यह अशुभ किधों है खेम ।। इम चिंतत भ्रमण करांही, "वनपालक वनके मांही ॥२६॥ विपुलाचल गिरके ऊपर, ६धरणीश सुरेश मही पर । चहुविधजुत देव अपारा, जय जय वच करत उचारा ॥२७॥ एक दिवस राजा श्रेणिक महामण्डलेश्वर राजाके योग्य सिंहासन, चमर तथा छत्र आदि राजचिह्नों सहित सभामें बैठा हुआ था, उस समय जो हाल हुआ वह सुनो ॥२१॥ ___ एक दिन वनकी रक्षा करनेवाला माली कहीं वनमें घूम रहा था। उसने देखा कि जिन जीवोंका अपना पर्याय सम्बन्धी वैर विरोध है वे भी एक स्थानमें पास पास बैठकर क्रीडा कर रहे हैं । घोडा और भैंसा, इनका जन्मजात विरोध है परन्तु वे मनमें प्रीति धारण कर एक जगह बैठे हुए हैं ॥२२-२३॥ बिलाव हृदयमें प्रीति धारण कर चूहेको बड़े हर्षसे खिला रहा है। साँप और नेवला-दोनों एक स्थान पर बैठ कर अधिक मैत्रीभाव प्रकट कर रहे हैं ॥२४॥ इन्हें आदि लेकर और भी अनेक विरोधी जीव अपना अपना वैरभाव छोड़कर एकत्रित हुए हैं। उन सबको एक स्थान पर बैठे देख वनमाली आश्चर्य और चिंताको धारण कर चला ॥२५॥ वह अपने मनमें इस प्रकारका विचार करता जाता था कि यह सब अशुभ है या मंगलकारी है ? इस तरह विचार करता हुआ वनमाली वनमें भ्रमण कर रहा था कि उसने विपुलाचल पर्वतके १ छत्र २ चित्त धरि ३ मर्कट स० ४ अति अचरिज...विशाला स० अचिरज धरि चित्त... ५ अद्भुत विरतंत लखाहि स० ६ असुरेश्वर भक्ति धरै उरि स० * २४ वें छन्दके आगे स प्रतिमें यह छन्द अधिक है पुनि काननि पादप जेते, फल फूल फरे अति तेते । सब रितके एकहि वारा, लखि एक भयो निरधारा ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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