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________________ क्रियाकोष ग्रास लैनको ऐसी करै, मुखमें देत न करतैं परे । बीच पिवो पाणी न गहाय, अंतराय गल अटकै थाय ॥ १७५६॥ जिनपूजा विधि जुत दिन तीस, करै वंदना गुरु नमि सीस । शास्त्र बखाण सुणै मन लाय, धरम कथामें दिवस गमाय || १७५७॥ पालै शील वचन मन काय, इह विधि महा पुण्य उपजाय । यातै सुरपद होवै ठीक, अनुक्रम शिव पावै तहकीक ।। १७५८ ।। मेरु पंक्ति व्रत चौपाई वरत मेरु पंकति जो नाम, तास करन विधि सुनि अभिराम । द्वीप अढाई मध्य सुजाण, पंच मेरु जे प्रकट बखाण ।। १७५९॥ जम्बूद्वीप सुदर्शन सही, विजय सु पूरव धातकी सही । अपर धातकी अचल प्रमान, प्राची पोहकर मंदर मान || १७६०॥ पुहकर अपर जु विद्युन्मालि, पंच मेरु वन बीस सम्हालि । तिनमें असी चैत्यगृह सार, तिनके व्रत प्रौषध निरधार || १७६१॥ सुनहु सुदरशन भूधर जेह, भद्रसाल वन चहुं दिसि तेह | जिनमंदिर तिह चार बखाण, प्रोषध चार इकंतर ठाण || १७६२|| २८१ 1 ग्रास लेनेकी विधि ऐसी है कि इतना बड़ा ग्रास बनाया जाय जो मुखमें देते समय हाथसे नीचे न गिरे । ग्रासके बीचमें पानी नहीं पीना चाहिये । गलेमें ग्रासके अटक जानेपर अन्तराय मानना चाहिये || १७५६ ।। व्रतके तीस दिन जिनपूजा, गुरुवंदना, शास्त्र - व्याख्यान तथा धर्मकथा श्रवणमें व्यतीत करने चाहिये । मन वचन कायासे शीलव्रतका पालन करना चाहिये । इस विधिसे व्रत करने पर महान पुण्यका उपार्जन होता है, जिससे देवपदकी प्राप्ति होती है और अनुक्रमसे मोक्ष प्राप्त होता है इसमें संशय नहीं है ।।१७५७-१७५८ ।। मेरुपंक्ति व्रत अब मेरुपंक्ति व्रतकी मनोहर विधि सुनो। अढ़ाई द्वीपमें पाँच मेरु पर्वत हैं यह जगत में प्रसिद्ध है। जम्बूद्वीपमें सुदर्शन मेरु, धातकी खण्डकी पूर्व दिशामें विजय और पश्चिम दिशा में अचल, पुष्करवर द्वीपके पूर्वमें मन्दर और पश्चिम दिशामें विद्युन्माली, इस प्रकार पाँच मेरु हैं । पाँचों मेरु संबंधी बीस वन हैं और उनमें अस्सी जिनमंदिर हैं। उन मंदिरों और वनोंके उपवास कहे गये हैं ।। १७५९-१७६१॥ यह व्रत जम्बूद्वीपके सुदर्शन मेरुसे शुरू होता हैं । सुदर्शन मेरुका पहला वन भद्रशाल वन है । उसकी चार दिशाओंमें चार मंदिर हैं । उन मंदिरोंकी अपेक्षा चार उपवास और वनकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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