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________________ क्रियाकोष २७९ रोहिणी व्रत दोहा व्रत अशोक रोहणि तनो, करिहै जे भवि जीव । सात बीस प्रोषध सकल, धरि त्रिशुद्धता कीव ॥१७४४॥ अडिल्ल छंद । जिह दिन मांझे नक्षत्र रोहिणी आय है, ताको प्रोषध करै सकल सुखदाय है; अनुक्रमतें उपवास सताइस जानिये, वरष सवा दुय मांहि पूर्णता मानिये ॥१७४५॥ कोकिला पंचमी व्रत दोहा अबै कोकिला पंचमी, वरत कहो विधि सार । शील सहित प्रोषध किये, सुरपदको दातार ॥१७४६॥ द्रुतविलंबित छंद पखि अँधारय मास असाढ ही, करिय प्रोषध कातिक लौं सही । तिथि सु पंचमीके उपवास ही, प्रति सुकोकिल पंचमिको लही ॥१७४७॥ दोहा मरयादा या वरतकी, सुनहु भविक परवीन । पाँच वरष लौ कीजिये, त्रिविध शुद्धता कीन ॥१७४८॥ दिनका है इसलिये एक बार इसे करना चाहिये और मन वचन कायसे जिनदेवकी पूजा करना चाहिये । इससे देवपदकी प्राप्ति होती है ॥१७४२-१७४३॥ रोहिणी व्रत __ जो भव्यजीव अशोक रोहिणी व्रत करते हैं उन्हें मन वचन कायकी शुद्धतापूर्वक सत्ताईस प्रोषध करने चाहिये ॥१७४४॥ जिस दिन रोहिणी नक्षत्र हो उस दिन प्रोषध करना रोहिणी व्रत हैं। यह व्रत सकल सुखोंको देनेवाला है। इसमें क्रमसे सत्ताईस उपवास होते हैं और यह सवा दो वर्षमें पूर्ण होता है ॥१७४५।। कोकिला पंचमी व्रत अब ‘कोकिला पंचमी व्रत'की विधि कहते हैं। शील सहित प्रोषध करनेसे यह व्रत इन्द्र पदको देता है ॥१७४६॥ आषाढ़ मासके कृष्ण पक्षसे लेकर कार्तिक मासके कृष्ण पक्ष तक यह व्रत किया जाता है। प्रत्येक कृष्ण पक्षकी पंचमीको उपवास करना चाहिये ॥१७४७।। इस व्रतकी मर्यादा पाँच वर्षकी है इसलिये हे चतुर भव्यजनों ! पाँच वर्ष तक मन वचन कायकी शुद्धतापूर्वक इस व्रतको करो ॥१७४८॥ १ पाख अंधेरा मांहि पंचमी अषाढकी स० न० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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