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________________ २२६ श्री कवि किशनसिंह विरचित प्रथम जाप अक्षर पैंतीस, दूजो सोलह वरण गरीस । तृतिय अंक छह अरहंत सिद्ध, असिआउसा तुरिय प्रसिद्ध || १४२७॥ पंच वरण च्यारि अरहंत, षष्ठम दुय जपि सिद्ध महंत । वरण एक जो वो ॐकार, जाप सात ये जपिये सार ॥ १४२८॥ कही द्रव्यसंग्रहमें एह, सात जाप लखि तजि संदेह । और जाप गुरुमुख सुनि वाणि, तेऊ जपिये निज हित जाणि ॥ १४२९॥ मेरु बिना मणिया सौ आठ, जाप तणा जिनमत इह पाठ | स्फटिक मणि अरु मोती माल, सुवरण रूपो सुरंग प्रवाल ॥ १४३०॥ जीवा पोता रेशम जाणि, कमल-गटा अरु सूत बखान । ए नौ भाँति जापके भेद, भावसहित जपि तजि मन खेद || १४३१॥ दोहा दिसि विशेष तिनिको कह्यो, जिनमंदिर बिनु थान । चैत्यालयमें जाप करि, सन्मुख श्री भगवान || १४३२|| जापके मंत्रोंमें प्रथम जाप मंत्र णमोकार मंत्ररूप पैंतीस अक्षरोंका है। द्वितीय मंत्र सोलह अक्षरोंका है। तृतीय मंत्र 'अरहंत सिद्ध' इन छह अक्षरोंका है । चतुर्थ मंत्र 'असिआउसा' इन पाँच अक्षरोंका है। पंचम मंत्र 'अरहंत' इन चार अक्षरोंका है। छठवाँ मंत्र 'सिद्ध' इन दो अक्षरोंका है। सातवाँ मंत्र 'ॐ' इस एक अक्षरका है । इन मंत्रोंको भावपूर्वक जपना चाहिये । द्रव्यसंग्रह ग्रंथ में ये सात जाप मंत्र कहे गये हैं सो इनका संदेह छोड़कर जाप करना चाहिये । इनके सिवाय गुरुमुखसे जो मंत्र सुने जावें उनका भी निज हित जानकर जाप करना चाहिये ।।१४२७-१४२९॥ जामें सुमेरुके सिवाय एक सौ आठ मणि होते हैं । इनके द्वारा मनमें जिनवरका पाठ करना चाहिये अर्थात् मनमें जाप मंत्रका उच्चारण करना चाहिये । स्फटिक मणि, मोती, सुवर्ण, चाँदी, मूंगा, रेशममें गुम्फित पोत, कमलगटा और सूत, ये जापके नौ भेद हैं सो मनका खेद छोड़कर भावपूर्वक इन जापोंसे अर्थात् मालाओंसे मंत्रोंका जाप करना चाहिये ।।१४३०-१४३१॥ ऊपर दिशाओंका जो वर्णन किया है वह मंदिरके सिवाय अन्य स्थानोंके लिये कहा है । मंदिरमें यदि जाप करे तो प्रतिमाके सन्मुख ही करे || १४३२ ॥ १ ' णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं' यह ३५ अक्षरोंका मंत्र है । २ 'नमोऽर्हतसिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः' यह १६ अक्षरोंका मंत्र है । ३ Jain Education International पणतीस सोल छप्पण, चदु दुग मेगं च जवह झाह । परमेट्ठि वाचयाणं, अण्णं च गुरु वसेण ॥ ४९ ॥ द्रव्यसंग्रह For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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