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________________ क्रियाकोष २०९ सोरठा को कवि कहै बनाय, ताके अवगुणको कथन । प्रायश्चित न समाय, जिहि दिन दिन खोटी क्रिया ॥१३२६॥ अडिल्ल छंद अरु जाकै घर त्रिया दया व्रत पालिनी, सत्य वचन मुख कहै अदत्तहि टालिनी; ब्रह्मचर्यको धरै सती सब जन कहै, पतिवरता पतिभक्तिरूप नित ही रहै ॥१३२७|| जिनवरकी सो पूज करे नित भावसों, पात्रनिको दे दान महा उच्छाहसों; सूतक पातक ताके घर नहि पाइये, प्रायश्चित तिय तिहिको केम बताइये ॥१३२८॥ दोहा इह सूतक वरनन कियो, मूलाचार प्रमान । तिह अनुसार जु चालिहै, ता सम और न जान ॥१३२९॥ सोरठा भाषा कीनी सार, जो मन संशय ऊपजै । देखो मूलाचार, मन संशय भाजे सही ॥१३३०॥ ग्रन्थकार कहते हैं कि जिसके घर दिन प्रतिदिन खोटी क्रियाएँ होती हैं उसके अवगुणोंका कथन कौन कवि कर सकता है तथा उसे प्रायश्चित्त कौन दे सकता है ? ॥१३२६।। इसके विपरीत जिसके घर स्त्री दयाव्रतका पालन करती है, मुखसे सत्य वचन बोलती है, अदत्त वस्तुको ग्रहण नहीं करती है, शीलव्रतको धारण करती है, सब लोग जिसे सती कहते हैं, जो पतिव्रता है, सदा पतिभक्ति करती है, जिनेन्द्रदेवकी भावपूर्वक नित्य पूजा करती है, और बड़े उत्साहसे पात्रोंको दान देती है उसके घर सूतक पातक नहीं होता। उस स्त्रीके लिये प्रायश्चित्त कौन बतलावेगा ? ॥१३२७-१३२८॥ ___ हमने यह वर्णन *मूलाचारके अनुसार किया है। इसके अनुसार जो चलता है उसके समान और कोई दूसरा नहीं है। हमने यहाँ मूलाचारकी भाषा की है; यदि मनमें संशय उत्पन्न हो तो मूलाचार देखो जिससे मनका सब संशय दूर हो जावेगा ॥१३२९-१३३०।। * वट्टकेराचार्य विरचित मूलाचारमें इस प्रकारका कोई वर्णन नहीं है। ऐसा जान पड़ता है कि ग्रंथकारने त्रिवर्णाचारको ही मूलाचार समझ लिया है, क्योंकि यह सब वर्णन उसीमें उपलब्ध है। १४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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