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________________ (१८) विषय-सूची (४) पृष्ठ पद्य १-८ ९-२१ २२-४१ ४२-५८ ५९-६२ ६३-८७ प्रकाशकीय (३) आद्य वक्तव्य इस युगके महान् तत्त्ववेत्ता श्रीमद् राजचंद्र विषय पीठिका-मङ्गलाचरण १-२ ग्रंथकी उत्पत्तिके अन्तर्गत राजगृही और राजा श्रेणिकका वर्णनविपुलाचल पर भगवान महावीरके समवसरणका आगमन तथा वनमें षट्कतुके फल-फूलोंका वर्णन वनपालकके द्वारा फल-फूलोंकी भेंट समर्पित कर समवसरणके आगमनकी सूचना-राजा श्रेणिकका हर्षविभोर होकर परोक्ष नमस्कार करना तथा वन्दनाके लिये आनन्दभेरी बजवाकर समवसरणमें जाना राजा श्रेणिक द्वारा भगवान महावीर स्वामी तथा गौतम आदि गणधरोंका - स्तवनकर मनुष्योंके कोठेमें बैठना तथा त्रेपन क्रियाओंका पूछना ७-८ गणधर द्वारा त्रेपन क्रियाओंका वर्णन ९-१० त्रेपन क्रियाओंके अन्तर्गत आठ मूलगुणोंका वर्णन-बाईस अभक्ष्योंके दोषका वर्णन-ऋतुके अनुसार पक्वान्न आदिकी मर्यादाका कथन ११-१४ पाँच उदुम्बर फल, कन्दमूल तथा मदिरा, भांग आदि मादक वस्तुओंके त्यागका उपदेश १४-१६ द्विदलका वर्णन १६-१८ कांजीका वर्णन १८-२० गोरसकी मर्यादाका कथन २१-२२ चर्माश्रित वस्तुओंके सेवनका निषेध तथा बाजारके आटा-मेंदा आदिके __ त्यागका उपदेश २३-२७ रसोई, चक्की और पानी रखनेके स्थान आदिका वर्णन और उन पर चंदेवा लगाना आदिका उपदेश २८-३० मुरब्बा आदिका वर्णन ३०-३१ रसोई वा भोजनकी क्रियाका वर्णन ३१-३४ रजस्वला स्त्रीकी क्रियाका वर्णन ३४-३८ द्वादश व्रत कथन ३९-४० अहिंसाणुव्रतका वर्णन ४०-४१ अहिंसाणुव्रतके अतिचार ४२-४३ सत्याणुव्रतका कथन ४३-४४ सत्यवचनके अतिचार ४५-४६ अदत्तत्याग अणुव्रतका कथन ४६-४७ अदत्तादान व्रतके अतिचार ४८-४९ ८८-१०० १०१-११६ ११७-१३० १३१-१४५ १४६-१७५ १७६-१९० १९१-२०१ २०२-२२२ २२३-२५१ २५२-२५९ २६०-२६७ २६८-२७७ २७८-२८३ २८४-२९३ २९४-३०० ३०१-३११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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