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श्री कवि किशनसिंह विरचित
जिनमंदिर जिनबिम्ब कराय, करी प्रतिष्ठा पुण्य उपाय । सिद्धक्षेत्र वंदे बहु भाय, जिन आगम सिद्धांत लिखाय ॥ ८८४ ॥ आप पढै औरनिकों देय, सप्त क्षेत्र धन खरच करेय । निशि-दिन चालै व्रत अनुसार, पुण्य उपायो अति सुखकार ।। ८८५ ॥ कितेक काल गया इह भांति, अन्त समय धारी उपशांति । दरसन ज्ञान चरण तप चार, आराधन मनमांहि विचार ||८८६ ॥
भाई निश्चै अरु व्यवहार, धरि संन्यास अंतकी बार । शुभ भावनितें छांडे प्रान, पायो षोडश स्वर्ग विमान ||८८७॥
सिद्धि आठ अणिमादिक लही, आयु वीस द्वय सागर भई । पांचों इंद्रीके सुख जिते, उदै प्रमाण भोगिये तिते ॥ ८८८॥ समकित धरमध्यान जुत होय, पूरण आयु करइ सुर लोय । देश अवन्ती मालव जाण, उज्जैनी नगरी सुखखाण ॥ ८८९ ॥ पृथ्वीबल तसु राज करेह, प्रेमकारिणी तिय गुणगेह । समकितदृष्टि दंपती सही, जिन आज्ञा हिरदय तिन गही ||८९०|| स्वर्ग सोलमे तैं सुर चयो, प्रेमकारिणीके सुत भयो । नाम सुधारस ताको दियो, मात पिता अति आनंद कियो ||८९१ ॥
जिनमंदिर बनवा कर जिन प्रतिमा बनवाई और उसकी प्रतिष्ठा कर पुण्योपार्जन किया। सिद्ध क्षेत्रोंकी वन्दना की, जिनागमके शास्त्र लिखवाये, उन्हें स्वयं पढ़ा तथा दूसरोंको पढ़वाया, सात क्षेत्रोंमें धन खर्च किया, रात दिन व्रतके अनुसार आचरण किया तथा सुखदायक पुण्यका उपार्जन किया । इस प्रकार उसका कितना ही काल बीत गया । अन्त समयमें शान्ति धारण कर मनमें दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप आराधनाका विचार किया। जब आयुका अंतिम समय आया तब संन्यास धारण कर निश्चय और व्यवहार आराधनाओंकी भावना की । तथा शुभभावोंसे प्राण छोड़कर सोलहवें स्वर्गमें विमान प्राप्त किया ।। ८८४-८८७।। वहाँ उसे अणिमा आदि आठ सिद्धियाँ प्राप्त हुई, बाईस सागरकी आयु मिली, पाँचों इन्द्रियोंके सुख प्राप्त हुए और उदयके अनुसार उसने उन सुखोंका उपभोग किया ||८८८ || अन्त समयमें सम्यग्दर्शन और धर्मध्यानसे युक्त होकर उसने देवाको पूर्ण किया। अब वह कहाँ उत्पन्न हुआ उसका वर्णन सुनो।
अवन्ती देशके मालव प्रदेशमें उज्जयिनी नामकी नगरी है। पृथ्वीबल राजा वहाँ राज्य करता था। उसकी स्त्रीका नाम प्रेमकारिणी था । प्रेमकारिणी अनेक गुणोंका स्थान थी। दोनों ही दम्पती सम्यग्दृष्टि थे तथा जिन-आज्ञाको हृदयमें धारण करते थे ।। ८८९-८९० ।। महीदत्तका
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