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क्रियाकोष
संन्यासमरणकी विधि सवैया
दृगधारी श्रावक व्रत पालै पीछे ही संन्यास, सहित अंतकाल तजै निज प्राण ही; संन्यास प्रकार दोइ एक है कषाय नाश,
दुतिय आहार त्याग प्रगट बखानही । आराधना च्यारि भावै दरसण प्रथम दूजी,
ग्यान तीजी चरण विशेष तप जानही; जैसी विधि कषाय संन्यासको विचार जैसे,
कहूं भव्य सुणि मनमांहि ठीक आन ही ||६७४ ||
दोहा
सकल स्वजन परजननितैं, मन वच काय त्रिशुद्ध । सल्य त्यागि खिम है खिमा, करि परिणाम विशुद्ध ||६७५॥ अति नजीक निज मरन लखि, अनुक्रम तजि आहार । पाछै अनसन लेयकै, नियम असन बहुकार ॥ ६७६ ॥ चार आराधनाकौं तबै, आराधै भवि सार । दरसन ग्यांन चरित्र फुनि, तप द्वादश विधि सार ||६७७॥ आगे संन्यासमरणकी विधि कहते हैं
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सम्यग्दृष्टिको श्रावकके व्रत पालना चाहिये । पश्चात् जब अन्त समय आवे तब संन्यासपूर्वक प्राणत्याग करना चाहिये । संन्यास दो प्रकारका है, एक कषायका नाश करना और दूसरा आहारका त्याग करना । संन्यासके समय दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप इन चार आराधनाओंकी भावना करनी चाहिये । कषाय संन्यासकी विधि क्या है ? इसका कथन करता हूँ सो हे भव्यजनों! उसे सुन कर मनमें अच्छी तरह धारण करो || ६७४॥
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मन वचन कायकी शुद्धतापूर्वक समस्त कुटुंबीजन तथा सेवक आदि परिजनोंसे निःशल्य होकर क्षमा माँगे और उन्हें विशुद्ध भावोंसे क्षमा करें ||६७५ ॥
जब मरणका समय अत्यन्त निकट जान पड़े तब क्रम क्रमसे आहारका त्याग करे अर्थात् पहले दालभात आदिका त्याग पर पेय पदार्थ रक्खे, फिर उनका भी त्याग कर गर्म पानी रक्खे, पश्चात् उसका भी त्याग कर अनशनका नियम धारण करे || ६७६ ॥
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भव्यजीव, संन्यासके समय सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र और बारह प्रकारका तप, इन चार आराधनाओंकी भावना करे || ६७७॥
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