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________________ ९८ श्री कवि किशनसिंह विरचित षडरसमें जो राखै तजै, तिहि अनुसार सुनिति प्रति सजै । पाणी सरबत दूध रु मही, दरव जिते पीवेकै सही ॥६२४॥ ता मधि बुध राखै जे द्रव्य, ता विनु सकल त्यागिये भव्य । चोवा चंदन कुंकुम तेल, मुख धोवो रु अरगजा मेल ॥३२५॥ औषध आदि लेप हैं जेह, संख्या राखि भोगिये तेह । पुष्प गंध सूंघिये 'तेह, जाप समै जे राखे २जेह ॥६२६॥ करि भुकती जो फूल हि तणी, सचित्त मध्य तेऊ राखणी । सचित्तमांहिराखी नहि जाय, जिस दिन भूल न करहिंगहाय ॥६२७॥ पान सुपारी डोडा गही, लोंगादिक मुख सोध जु कही । दालचिनी जावित्री जान, जातीफल तंबोल वखान ॥६२८॥ पान आदि सचित्त जु थाय, सचित्त मांहि राखें तो खाय । सचित्तमांहि राखत वीसरै, तो वह दिन खांनी न हि परै ॥६२९॥ गीत नाद कोतूहल जहां, जैवो राख्यौ जै है तहां । मरयादा न उलंधै कदा, जो उपसर्ग आय है जदा ॥६३०॥ एक भेद यामें है और, आप आपणी बैठै ठौर । गावत गीति तिया नीकली, सुणि कर हरख्यौ चित्त धर रली ॥६३१॥ करना, यह षडरस विषयक नियम है। पानी, सरबत. दध और तक्र आदि पान कहलाते हैं। इनमें जितनेका नियम लिया है उतने ही लेना, अन्य सबका त्याग करना यह पान विषयक नियम है। चोवा (एक सुगंधित पदार्थ), चंदन, कुंकुम, तेल, दंतमंजन, अरगजा तथा औषध आदिके जितने लेप हैं उनकी संख्या रख कर भोग करना चाहिये। यह कुंकुमादि विलेपन विषयक नियम है ॥६२४-६२६॥ सचित्त फलोंमें बीच जितने फलोंका नियम लिया है उतनेका ही उपभोग करे। जिस दिन भूलवश सचित्तका नियम नहीं लिया है उस दिन उनका सेवन सर्वथा नहीं करे॥६२७॥ पान, सुपारी, डोडा, लोंग, दालचिनी, जायपत्री, जायफल तथा ताम्बूल आदि जो मुखशुद्धिके पदार्थ हैं इनका भी नियम कर लेना चाहिये । पान आदिक सचित्त हैं, यदि सचित्त खानेका नियम है तो खावे, अन्यथा नहीं। यदि किसी दिन सचित्त वस्तुका नियम लेना भूल जावे तो उस दिन नहीं खावे ॥६२८-६२९॥ जहाँ गीत, नृत्य, कौतूहल आदि हो रहा है यदि वहाँ जानेका नियम रक्खा हैं तो जावे । यदि वहाँ किसी प्रकारका उपसर्ग आवे तो मर्यादाका उल्लंघन कभी नहीं करे ॥६३०॥ इस विषयमें एक भेद और है, वह यह कि आप अपने स्थान पर बैठा हो, वहाँसे स्त्रियाँ गीत गाती हुई निकलें उनके गीतको सुन कर चित्तमें यदि हर्षभाव उत्पन्न होता है तो उससे अधिक दोष १ सोय न० २ होय न० ३ जिहि दिन न० तिहि दिन स० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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