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तीर्थकर चरित्र भाग ३ နနနနနနနနနနနနနနနနနန်နနနနနနန်းန န်း
कर के कुचेष्टा करना और दूसरों को हँसाना ५ कन्दर्प-चेष्टा-विषयोत्पादक वचन बोलना।
ये तीन गुणव्रत हैं। इनके पालन से अणुव्रत के गुणों में वृद्धि होती है।
९ सामायिक व्रत-प्रमादाचरण का त्याग कर सर्व सावद्य प्रवृत्ति को रोक करज्ञानदर्शन और चारित्र का लाभ बढ़ाने के लिए सामायिक करना।
सामायिक व्रत के अतिचार-१-३ मन वचन और काया को बुरे कार्यों में जोड़ना (पाप युक्त प्रवृत्ति में लगाना) ४ अनादर-उत्साह-रहित होकर बेगार की तरह करना, अनियमित रूप से करना, समय पूरा होने के पूर्व ही पार लेना और ५ स्मृति अनवधारणा-सामायिक की स्मृति-उपयोग नहीं रखना । प्रमाद की अधिकता से सामायिक को भूल जाना।
१० देशावकाशिक व्रत-आधा दिन एक दिन दो दिन आदि निर्धारित समय एवं क्षेत्र सीमा में रह कर और निर्धारित वस्तु रख कर शेष का त्याग करके धर्मसाधना करना।
देशावकासिक व्रत के अतिचार-१ प्रेष्य प्रयोग-मर्यादित भूमि के बाहर दूसरे को भेजना अर्थात् खुद के जाने से व्रत-भंग होता है ऐसा सोच कर दूसरे को भेजना २ आनयन प्रयोग-मर्यादित भूमि से बाहर रही हुई वस्तु को किसी के द्वारा मँगवाना ३ पुद्गल प्रक्षेप-मर्यादित भूमि से बाहर रहे हुए व्यक्ति को बुलाने या किसी प्रकार का संकेत करने के लिए कंकर आदि फेंकना ४ शब्दानुपात-हुकार, खखार या किसी प्रकार की आवाज से बाहर रहे हुए व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित करना और ५ रूपानुपातअपने को दिखा कर बाहर रहे हुए व्यक्ति को आकर्षित करना ।
११ पौषधोपवास व्रत-१ आहार-त्याग २ शरीर-संस्कार त्याग ३ अब्रह्म त्याग ४ सावद्य-व्यापार त्याग । इनका त्याग कर के धर्मसाधना करना ।
पौषध व्रत के अतिचार-१ दृष्टि से देखे बिना और प्रमार्जन किये बिना मलमत्रादि का त्याग करना २ दृष्टि से देखे और प्रमार्जन किये बिना पाटला आदि लेना ३ बिना देखे और बिना प्रेमार्जन किये संथारा करना ४ पौषध के प्रति अनादर भाव रखना और ५ पौषध की स्मृति नहीं रख कर भूल जाना।
१२ अतिथि-संविभाग व्रत-सर्व त्यागी निग्रंथ साधु-साध्वी को शुद्ध निर्दोष आहारादि भक्ति पूर्वक प्रदान करना ।
अतिथि-संविभाग व्रत के पांच अतिचार-१ प्रासुक वस्तु को सचित्त पृथ्वी, पानी आदि पर रख देना २ सचित्त वस्तु से ढक देना ३ गोचरी का समय हो जाने के
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