SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीर्थकर-चरित्र भाग ३ ककककककककककककककककककककककककककककककककक storish २ अंगोपांग का छेदन करना-काटना, ३ शक्ति अथवा परिमाण से अधिक भार लादनां ४ मर्मस्थल में प्रहार करना और ५ भोजन नहीं देना। पुत्रादि को कुमार्ग में जाते हुए को रोकना पड़े व शिक्षा देते हुए भी नहीं माने और दण्ड देना पड़े तथा गाय-बैल आदि को उजाड़ करते या सुरक्षार्थ बाँधमा पड़े तो अतिचार नहीं लगता । क्योंकि इसमें हित-कामना रही हुई है । इसी प्रकार फोड़ा-फुन्सी या किसी रोग के कारण अंग का छेदन करना पड़े, रोगी को लघन कराना पड़े, तो हितकामना युक्त होने से अतिचार नहीं लगता । जहाँ क्रूरता एवं निर्दयता से ये कार्य हों, वहीं अतिचार हैं। __२ दूसरा अणुव्रत स्थूल मृषावाद से विरत होना-बड़ी झूठ का त्याग । जिसके कारण जीवों को दुःख हो, घात हो जाय, जीवन दुःख-शोक एवं क्लेशमय बन जाय ऐसे झूठे वचन का त्याग करना चाहिये । मुख्यतया ऐसे झूठ पाँच प्रकार के होते हैं-- १ कन्यालीक-कन्या और वर अर्थात् स्त्री और पुरुष के विषय में झूठ बोलना, २ गवा. लोक-माय, बैल, भैंस, घोड़ा आदि पश-जाति के लिए मिथ्या बोलना । इसी प्रकार ३ सम्मलीक ४ न्यासापहार-धरोहर रख कर बदल जाना और ५ कूटसाक्ष्य-खोटी शाबाही देना। दूसरे व्रत के पाँन्न अतिबार-१४ मिथ्या उपदेश देना-जिस उपदेश अथवा परामर्श से दूसरों को दुःख हो जैसे-" इस बछड़े को साल में जोतो, इसे खस्सी करो, इस अधम को मार डालना चाहिए।' अथवा वस्तु का जै। स्वरूप हो,, उसके विपरीत प्ररूपणा करना, पापकारी प्रेरणा करना, सत्य का अपलाप करना, झूठ बेलने की सलाह देना आदि । २ असत्य दोषारोपण-विना सोचे. किसो पर झूठा कलंक लगाना, बिना -ठीक निर्णय किय किसी को चोर-जार आदि कहना । ३ गुह्यभाषण-किसी को एकांत में बातचीत करते देख कर यह अनुमना लगाना कि इसने राज्य-विरुद्ध या ऐसा ही कोई आपत्तिजनक कार्य किया है और ऐसे अनुमान को प्रचारित कर देना-चुगली । करना । ४ कुट-लेखन-झूठे लेख लिखना, जाली दस्तावेज बनाना और ५ मित्र, पत्नी : आदि या अपने पर विश्वास करने वालों की गुप्त बात प्रकट करना। .. ३ अदत्तत्याग अणुव्रत-बड़ी चोरी का त्याग । यह भी पाँच प्रकार की है- १ घर में सेंध लगा कर, २ गाँठ खोल कर, ३ बन्द ताला खोल कर, ४ दूसरों की गिरी ___x यहाँ आगमोल्लिखित क्रम में अन्तर आला है, कहीं-कहीं अतिचार के नामों में भी अन्तर है। ग्रहाँ त्रि. श. पु. च. के आधार से लिखा जा र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy