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________________ प्रथमावृत्ति के विषय में लेखक का निवेदन तीर्थकर-चरित्र का यह तीसरा--अंतिम--भाग पूर्ण करते मुझे प्रसन्नता हो रही है । शारीरिक निर्बलता रुग्णता एवं शक्ति-क्षीणता से कई बार मन में सन्देह उत्पन्न हुआ कि कदाचित् मैं इसे पूर्ण नहीं कर सकूँगा और शेष रहा काम या तो यों ही धरा रह जायगा. या किसी अन्य को पूर्ण करना पडेगा। परन्त सन्देह व्यर्थ हो कर भावना सफल हुई और आज यह कार्य पूर्ण हुआ। यह लेखन कार्य मैने अकेले ही अपनी समझ के अनुसार किया है । न कोई सहायक रहा, न संशोधक, साधन सीमित और योग्यता भी उल्लेखनीय नहीं। इस स्थिति में अच्छा निर्दोष और विद्वमान्य प्रकाशन कैसे हो सकता है ? भाव-भाषा और चरित्र लेखन में कई त्रुटिये रही होगी, कहीं वास्तविकता के विपरीत भी लिखा गया होगा। मैने यथाशक्य सावधानी रखी, फिर भी भूलें रही हो, तो मेरी विवशता का विचार कर पाठकगण क्षमा करेंगे और भूल सूझाने की कृपा करेंगे। प्रथम भाग सन् १९७३ में प्रकाशित हुआ था। उसमें प्रथम से लगाकर १९ तीर्थंकर भगवंतों, ८ चक्रवतियों, ७ बलदेवों, वासुदेवों और प्रतिवासुदेवों के चरित्र का समावेश हुआ था। दूसरा भाग मार्च १९७६ में प्रकाशित हुआ। उसमें २० वें तीर्थंकर भगवान् मुनिसुव्रत स्वामी, २१ वें नमिनाथ स्वामी और २२ वें तीर्थकर भगवान् अरिष्ट नेमिनाथजी ऐसे तीन तीर्थकर भगवंतों का, ३ चक्रवर्ती सम्राटों और दो-दो बलदेव, वासुदेव और प्रतिवासुदेवों का चरित्र आया । . इस तीसरे भाग में २३ वें तीर्थंकर भगवान् श्री पार्श्वनाथजी और २४ वें अंतिम तीर्थंकर भगवान् महावीर स्वामी तथा अंतिम चक्रवर्ती का चरित्र आया है। __ अ. भा. साधुमार्गी जैन संस्कृति-रक्षक संघ साहित्य-रत्नमाला का यह ५७ वा रत्न समाज-हित में समर्पित है। सैलाना मार्गशीर्ष शुक्ला १५ रतनलाल डोशी वीर सम्वत् २५०४ दि. २५-१२-१९७७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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