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तीर्थकर चरित्र भाग ३ ककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककका
मसलता । उसकी कषाय बढ़ती जाती । जितनी रुचि उसकी आँखें मसलने में थी, उतनी कामभोग में नहीं थी।
इस प्रकार हिंसानुबन्धी रौद्रध्यान में सोलह वर्ष तक अत्यन्त लीन रहते हुए, इस अवसर्पिणी काल का अन्तिम (बारहवाँ) चक्रवर्ती सम्राट ब्रह्मदत्त अपनी प्रिया कुरुमति का नामोच्चारण करता हुआ मर कर सातवीं नरक में गया।
यह बारहवाँ चक्रवर्ती अठाईस वर्ष कुमार अवस्था में, छप्पन वर्ष माण्डलिक राजापने, सोलह वर्ष छह खण्ड साधने में और छह सौ वर्ष चक्रवर्ती पद, इस प्रकार कुल सात सौ वर्ष की आयु पूर्ण की और मर कर सातवीं नरक में गया।
।। इति ब्रह्मदत्त चरित्र ।।
* चक्रवर्ती के उसी भव में इतना पापोदय हो सकता है और वह सोलह वर्ष चलता है--यह एक प्रश्न है।
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