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________________ भोजन-भट्ट की याचना “नरेन्द्र ! जीवन प्रतिसमय समाप्त हो रहा है । मृत्यु-काल निकट आ रहा है । विलम्ब मत करो और शीघ्र ही आरंभ-परिग्रह का सर्वथा त्याग कर के जिनधर्म को अंगीकार कर लो।" महात्मा चित्रजी के हृदय-स्पर्शी उपदेश का सम्राट के हृदय पर क्षणिक प्रभाव पड़ा । परन्तु उदयभाव की प्रबलता से वे अत्यन्त प्रभावित थे । त्यागमय जीवन अपनाने की शक्ति उनकी लुप्त हो चुकी थी। वे विवश हो कर बोले-- ___"महात्मन् ! आपका उपदेश यथार्थ है । मैं इसे समझता हूँ, किन्तु मैं भोगों में आकण्ठ डूबा हुआ हूँ। मुझ-से त्यागधर्म का पालन होना अशक्य हो गया है। आपको भी स्मरण होगा कि मैने हस्तिनापुर की महारानी को देख कर निदान कर लिया था। उस निदान का फल में भोग रहा हूँ। जिस प्रकार कीचड़ में फंसा हुआ हाथी, सूखी भूमि को देखता हुआ भी उस तक नहीं पहुँच सकता और वहीं झुंचा रहता है, उसी प्रकार मैं धर्म को जानता हुआ भी प्राप्त नहीं कर सकता । यह मेरी विवशता है।" ब्रह्मदत्त की भोगगृद्धता जान कर महर्षि हताश हो गए और अन्त में उन्होंने कहा; "राजन् ! तुम भोगों का सर्वथा त्याग करने में असमर्थ हो और आरंभ-परिग्रह और भोगों मे गृद्ध हो । तुम्हारी त्याग धर्म में रुचि ही नहीं है । मैने व्यर्थ ही तुम्हें प्रतिबोध दे कर अपना समय गँवाया। अब मैं जा रहा हूँ। किन्तु यदि तुम कम-से-कम अनार्य कर्म त्याग दोगे और धर्म में दृढ़ श्रद्धा रखते हुए सभी जीवों पर अनुकम्पा रखोगे और सत्यादि आर्यनीति अपनाओगे तो तुम्हारी दुर्गति नहीं होगी और देवगति प्राप्त कर सकोगे।" इतना कह कर महर्षि चित्रजी वहाँ से चल दिये और चारित्रधर्म का उत्कृष्टतापूर्वक आराधन कर के सिद्धगति को प्राप्त हुए। चक्रवर्ती सम्राट ब्रह्मदत्त पर महर्षि के उपदेश का कोई प्रभाव नहीं पड़ा । वे भोग में तल्लीन हो गए। भोजनभट्ट की याचना जब ब्रह्मदत्त विपत्ति का मारा इधर-उधर भटक रहा था, तब एक ब्राह्मण ने उसे किसी प्रकार का सहयोग दिया था । ब्रह्मदत्त ने उसकी सेवा से संतुष्ट हो कर कहा था कि--" जब मुझे राज्य प्राप्त हो जाय, तब तू मेरे पास आना । मैं तुझे संतुष्ट करूँगा।" उस ब्राह्मण ने ब्रह्मदत्त के महाराजाधिराज बनने की बात सुनी, तो वह कम्पिलपुर आया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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