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________________ ४७८ ရေးသား तीर्थंकर चरित्र - भा. ३ ककककककककककककककककक कककककककककक होना जाना । उन्हें आघात लगा । वे शोकाकुल हो कर बोले "हे भगवन् ! निर्वाण के समय मुझे दूर क्यों भेजा ? प्रभो ! मैने इतने वर्षों तक आपकी सेवा की, परन्तु अन्तर समय में मैं दर्शन एवं सामिप्य से वञ्चित रहा । में दुर्भागी हूँ । वे धन्य हैं, जो अन्त समय तक आपके समीप रहे । हा ! मेरा हृदय वज्र का है, जो भगवान् का विरह जान कर भी नहीं फटता ? " "भगवन् ! मैं भ्रमित था। मैंने भूल की जो आप जैसे वीतराग के साथ राग किया, ममत्वभाव रखा। राग-द्वेष संसार के हेतु है । इसका भान कराने के लिये और मेरा मोह भंग करने के लिये ही आपने मुझे दूर किया होगा । आप जैसे राग-रहित, ममत्व-शून्य के प्रति राग रखना ही मेरी भूल थी।" इस प्रकार चिन्तन करते एकाग्रता बढ़ी, धर्मध्यान से शुक्लध्यान में प्रवेश किया, मोह का आवरण हटा और घातीकर्मों को क्षय कर सर्वज्ञ - सर्वदर्शी हो गये । श्री गौतम स्वामी को केवलज्ञान होने के पश्चात् पाँचवें गणवर श्री सुधर्मास्वामीजी भगवान् के उत्तराधिकारी आचार्य हुए । भगवन् के बयालीस चातुर्मास भगवान् ने दीक्षित होने के पश्चात् प्रथम चातुर्मास अस्थिक ग्राम में किया, चम्पा और पृष्ठ चम्पा में तीन चातुर्मास किये, वैशाली और वाणिज्य ग्राम में बारह, राजगृह और नालन्दा में चौदह, मिथिला में छह, भद्रिका में दो, आलंभिका में एक, श्रावस्ति में एक, वज्रभूमि में एक और पावापुरी में एक यह अंतिम चातुर्मास हुआ था । भगवान् की शिष्य - सम्पदा श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के उपदेश से प्रभावित होकर आठ राजा दीक्षित हुए। यथा-- १ वीरांगद २ वीररस ३ संजय ४ राजर्षि एणेयक ५ श्वेत ६ शिव ७ उदयन और ८ शंख | Jain Education International भगवान् की शिष्य सम्पदा इस प्रकार थी । गणधर ११, केवलज्ञानी ७००, मनः पर्यवज्ञानी ५००, अवधिज्ञानी १३००, चौदह पूर्वधर ३००, वादी ४००, वैक्रिय लब्धिधारी ७००, अनुत्तरोपपातिक ८००, साधु १४०००, साध्वियाँ ३६०००, श्रावक १५९०००, श्राविकाएँ ३१८००० । भगवान् के धर्मशासन में ७०० साधुओं और १४०० साध्वियों ने मुक्ति प्राप्त की । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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