SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 491
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४७४ तीर्थकर चरित्र--भाग ३ ............................................................... (८) जलभरित और कमलपुष्पों से आच्छादित कुभ, एक ओर उपेक्षित पड़े रहने के समान अमादि उतम गुणां से परिपूर्ण महात्मा विरले एवं बहुजन उपेक्षित से रहेंगे और मलपूरित कुंभ के समान दुराचारी वेशधारी सर्वत्र दिखाई देंग । वे कुशीलिये शुद्धाचारी मुनियों की निन्दा करेंगे और उन्हें कष्ट देने को तत्पर होंगे । वेश से दुराचारी और सदाचारी समान दिखाई देने के कारण अनसमझ सामान्य जनता दोनों को समान मानेगी। इस पर एक कथा इस प्रकार है ;-- __ "पृथ्वीपुर में 'पूण' नाम का राजा था । 'सुबुद्धि' उसका मन्त्री था। वह बुद्धिमान एवं योग्य था । सुखपूर्वक काल व्यतीत हो रहा था । मन्त्री को एक भविष्यवेत्ता ने कहा- एक मास पश्चात् वर्षा होगी। उसका पानी जो मनुष्य पियेगा, वह बावरा (विव ल मति) हो जायगा । कालान्तर से जब दूसरी बार वर्षा होगी, उसकाजल पी कर वे पुनः पूर्ववत् हो जगे।' मन्त्रो ने राजा से कहा और राजा ने जनता में हिं हारा पिटवा कर कहलाया कि “एक मास के पश्चात् वर्षा होगी, जिस का जल पीने वाले बावले हो ज वेंगे। इस लिय सभी लोग अपने घरों में जल का संचय करलें और उस वर्षा के पानी को नहीं पीवे।" राजा और मन्त्री ने पर्याप्त जल भर लिया और लोगों ने भी भरा । वर्ष हुई, तो लोगों ने उसका पानी नहीं पिया, परंतु संचित जल समाप्त हाने पर पीना पड़ा । पानी पीने वाले सब विक्षिप्त से हो कर नाचने-दने और अंटसट बकने लगे और अनेक प्रकार की कुचेष्टाएँ करने लगे। राजा और मन्त्रो के पास पर्याप्त जल था, सो वे तो इस पागलपन से बचे रहे । परंतु अन्य सामंत, सरदार अधिकारी सैनिक आदि सभी बावले होकर नाचकूद आदि करने लगे । केवल राजा और मन्त्री हो स्वस्थ रहे । सामन्तों, अधिकारियों और नागरिकों ने देखा कि 'राजा और मन्त्रो हम सब से सर्व या विपरीत हैं । इसलिये ये दोनों बद्धिहीन विक्षिप्त एवं अयोग्य हो गय हैं । अब ये राज्य का संचालन करने योग्य नहीं रहे । इसलिये इन्हें हटा कर अपने में से किसी योग्य को (जो अधिक नाचकूदादि करता हो) गजा और मन्त्री बनाना चाहिए । उनका विचार मन्त्री के जानने में आया । उसने गजा से कहा-“महाराज ! अब हमें भी इनके जैसा पागल बनना पड़ेगा। अन्यथा इन लोगों से बच नहीं सकेंगे। ये हमें दुःखी कर देंगे।" राजा समझ गया। राजा और मन्त्री बावलेपन का ढोंग करते हुए उसके साथ नाचकद करने लगे, हँसने और बकवाद करने लगे । उनका राज्य और मन्त्री-पद बच गया। कालान्तर में शुभ समय आया, शुभ वर्षा हुई। सभी उस जल को पी कर प्रकृतिस्थ हुए और पूर्ववत् व्यवहार करने लगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy