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________________ उग्र तपस्वी धन्य अनगार pancharpककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककर ४५९ भगवान् की आज्ञा स्वीकार कर स्थविर श्रमण अतिमुक्त मुनि की सेवा कन्ने लगे। अतिमुक्त अनगार ने एकादशांग श्रुत का अध्ययन किया, गुणरत्न सम्वत्सर तथा अनेक प्रकार के तप किय और समस्त कर्मों को नष्ट कर मिद्धगति को प्राप्त हुए । (अंतगडमूत्र ६--१५) उग्र तपस्वी धन्य अनगार काकंदी नगरी में 'भद्रा' नामकी सार्थवाही रहती थी। वह ऋद्धि सम्पत्ति और धन धान्यादि में परिपूर्ण थी, प्रभावगालिनी थी और अन्य लोगों के लिए आधारभूत थी। धन्यकुमार उसका पुत्र था । वह बत्तीस पत्नियों के साथ उच्च प्रकार के सुखोपभोग में मनुष्य-भव व्यतीत कर रहा था । श्रमण भगवान महावीर प्रभु पधारे । धन्यकुमार भी वन्दन करने गया। भगवान का धर्मोपदेश सुन कर धन्य संसार से विरक्त हो गया। माता से अनुमति प्रदान करने की याचना की । पुत्र की बात सुन कर माता मच्छित हो गई। सावचेत होने पर पुत्र को रोकने का प्रयत्न किया, परन्तु निष्फल रही। माता को विवश होकर अनुमति देनी पड़ो। माता भद्रा बहुमूल्य भेंट ले कर अपने सम्बन्धियों के साथ जितशत्रु नरेश की सेवामें गई और अपने पुत्र के दीक्षा-महोत्सव में छत्र-चामर आदि प्रदान करने की प्रार्थना की। राजा ने उसके भवन आ कर स्वयं दोक्षा महोत्सव करने का आश्वासन देकर भद्रा को विजित किया। धन्य-श्रेष्ठ भगवान से निग्रंथ-प्रव्रज्या ले कर अनगार बन गए । दीक्षित होते ही धन्य अतगार ने भगवान् की आज्ञा ले कर यह प्रतिज्ञा की कि "मैं आज से ही जीवनपर्यंत निरन्तर बेले बेले तपस्या करता रहूँगा और बेले के पारणे के दिन आयम्बिल तप करूँगा । आयम्बिल का आहार भी मैं उसी से लगा. जिसके हाथ दिये जाने वाले आहार से लिप्त होगा और वह आहार भी 'उज्झित धर्मा' = फेंकने के के योग्य होगा, x जिसे कोई श्रमण या भिखारी भी लेना नहीं चाहता हो । ऐसा फैकने योग्य आहार ही लंगा।" कहाँ कोट्याधिपति धन्य-श्रेष्ठि का, राजा-महाराजाओं के समान उच्च भोगमय जीवन और कहाँ यह कठोरतम साधना ? एक ही दिन में कितना परिवर्तन ? अपने x जैसे-चावल, खिचड़ी आदि पकाये हुए बरतन में अग्नि से जल कर या कड़े--कठोर बन कर चिपक जाते हैं, जिन्हें खरच कर फेंक दिया जाता है। जली हई रोटी आदि भी उज्झित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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