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यक्ष ने दुराचारियों को मार डाला
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यक्ष ने दुराचारियों को मार डाला
अचानक आई हुई विपत्ति से अर्ज न घबराया । इस विपत्ति से बचाने वाला वहाँ कोई नहीं था । उसे अपना देव याद आया। उसन साचा--
"मैं बचपन से ही इस देव की भक्तिपूर्वक पूजा करता आया । मैं समझता था कि यह देव सच्चा है। कठिनाई के समय मेरा २क्षा करेगा। परन्तु यह मेरा भ्रम ही रहा । इस भयकर विपत्ति से भी यह मेरा रक्षा नही कर सका । अब मै समझा कि यह देव नहीं, केवल काठ की मूति ही है। इतन दिन मैंने इसकी पूजा कर के व्यथ ही कष्ट उठाया।
अर्जुन का विचार और विपत्ति मुदगरपाणि यक्ष ने जानी। वह तत्काल अर्जुन के शरीर में घुसा और बन्धन तोड़ डाले । सहस्र पल भार वाला लोहे का मुद्गर उठा कर छहों दुराचारियों ओर बन्धुमती पर झपटा और सातों को मार डाला ।
नागरिकों पर संकट + राजा की घोषणा
यक्ष उन सातों को मार कर ही नहीं रुका, उसने प्रतिदिन छह पुरुष और एक स्त्री को मारने का नियन-सा बना लिया। उसने एस। धुन ही पकड़ ली । दोषी हो या निर्दोष, उसकी झपट में आया वह मारा गया । नगर के बाहर निकलना ही मृत्यु के सम्मुख जाने जैसा हो गया। यक्ष के बढ़ते हुए उपद्रव से महाराजा श्रेणिक भी चिंतित हो उठे । उन्होंने नगर में उद्घषणा करवाई--
___ "नगरजनों ! देव का प्रकोप है। तुम किसी भी कार्य के लिए नगर के बाहर मत निकलना । अर्जुन के शरीर में रहा हुआ देव, बाहर निकलने वाले को मार डालता है। सावधान रहो।"
भगवान का आगमन + सुदर्शन का साहस
इस संकट-काल को चलते छह मास हो गये । उस समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी का राजगृह के गुणशील उद्यान में पदार्पण हुआ। भगवान् का पदार्पण जान कर
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