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________________ ४४४ तीर्थक र चरित्र--भाग ३ ၀ ၀၀၀ ၀ ၀ ၀ နေနေနီးနီနီ နv•••••••••• • • • शंख-पुष्कली + भगवान द्वारा समाधान श्रावस्ति नगरी में 'शंख' आदि बहन से श्रमणोपासक रहते थे। वे धन-धान्या द से परिपूर्ण प्रभावशाली सुखी एवं शक्तिमान थे । वे जीव अजी वादि तत्त्वों के ज्ञ. ता थे। जिन-धर्म में उनकी अट्ट श्रद्धा थी। वे व्रतधारी श्रमणापासक थे। श्रमणोपासक शंख के ' उत्पला ' नाम की पत्नी थी । वह सुरूपा, सद्गुणी, तत्त्वज्ञा एवं विदुषी श्रमणोपासिका थी। उसी नगर में 'पुष्कली' नामक श्रमणोपासक भी रहता था। वह भी वैसा हो सम्पतगालो और धर्मज्ञ था । भगवान् महावीर प्रभु श्रावस्ति पधारे । नागरिकजन और श्रमणोपासक भगवान् की वन्दना करने आय, धर्मोपदेश सुना, प्रश्न पूछ कर जिज्ञासा पूर्ण की और समवसरण से चल दिये । चलते हुये शंख श्रमणोपासक ने कहा; - "देवानुप्रियो ! आप भोजन वनवाईये । अपन सब खा-पी कर पक्खी का पौषध करेंगे।" शंखजी की बात सभी ने स्वीकार की । शंखजी घर आये । उनकी भावना बढ़ी। उन्होंने निराहार पौषध करने का निश्चय किया और पौषधशाला में जा कर परिपूर्ण पौषध कर लिया। इधर पुष्कली आदि श्रमणोपासकों ने भोजन बनवाया और शंख जी की प्रतीक्षा करने लगे। शंख नहीं आये. तब पुष्कली शंखजी के घर गये । पुष्कलीजी को अपने घर आते हए देख कर उत्पला श्रमणोपासिका हर्षित हई,आसन से उठी और पुष्कली श्रमणोपासक के संमुख जा कर विधिवत् वन्दन-नमस्कार किया, आसन पर बिठाये और प्रयोजन पूछा । पुष्कली की बात सुन कर उत्पला ने कहा-"वे पौषधशाला में हैं। उन्होंने पौषध किया है।" पुष्कली पौषधशाला में गये, ईर्यापथिकीकी, शंखजी को विधिवत् वन्दना की और कहा-"देवानुप्रिय ! भोजन बन चुका है । आप चलिये । सब साथ ही भोजन कर के पौषध करेंगे।" -"देवानुप्रिय ! मैने तो पौषध कर लिया है । अब मुझे भोजन करना योग्य नहीं है। आप इच्छानुसार खा-पी कर पौषध करो"-शंख ने कहा । पुष्कली लौट आये। सभी ने खाया-पिया और पोषध किया । परन्तु उनके मन में शंख के प्रति रोष रहा । दूसरे दिन शंखजी बिना पौषध पाले ही भगवान् के समवसरण में गये और वन्दन-नमस्कार किया। पुष्कली आदि श्रमणोपासकों ने भी भगवान् की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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