SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 433
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४१६ तीर्थंकर चरित्र भाग ३ -"इन उत्तमोत्तम फलों के वृक्ष कहाँ है ?" -"हमारे पोतनाश्रम में है"-वेश्या बोली । कुमार उन अद्वितीय फलों पर आश्चर्य में था कि उसका हाथ वेश्या ने अपने पुष्ट स्तन पर फिगया। कुमार उसके स्तन और उनका मनोहारी स्पर्श अनुभव कर विशेष आकर्षित एवं अचम्भित हुआ। उसने पूछा -"आपके वक्ष पर ये बड़े-बड़े दो क्यों हैं और आपका शरीर इतना कोमल क्यों है ?' -"हम ऐसे मधुर और अत्यन्त पौष्टिक मिश्री-फल खाते हैं । इससे हमारा शरीर अत्यन्त कोमल है और इसी से ये दो बड़े-बड़े स्तन हो गये हैं । तुम ये तुच्छ फल खाते हो, इससे तुम्हारी देह कठोर, रुक्ष और शुष्क हो गई । यदि तुम हमारे आश्रम में आओ और ऐसे फल खाओ, तो तुम्हारा शरीर भी ऐसा बन जाय"-वेश्या ने स्नेहपूर्वक स्मित करते हुए कहा । _वल्कलचीरी का मन अपने आश्रम से हट कर वेश्याओं के मोहजाल में फंस गया। वह आश्रम में गया और अपने उपकरण रख कर लौटा । वेश्याएँ उसकी प्रतीक्षा करने लगी, किंतु इतने में वृक्ष पर चढ़ कर इधर-उधर देखते हुए वेश्या के गुप्तचर ने उन्हें संकेत से बताया कि 'वृद्ध ऋषि वन में से इधर ही आ रहे हैं।' वे डरी । उन्हें ऋषि के शाप का भय लगा। वे वहाँ से भाग गई। ऋषिपुत्र उन वेश्याओं की खोज करने लगा। उसकी एकमात्र लंगन उन वेश्याओं के आश्रम में उनके साथ रहने की थी। वह वन में भटक रहा था कि उसे एक रथ आता हुआ दिखाई दिया। यह भी उसके लिए एक नयी ही वस्तु थी। जब रथ निकट आया, तो उसने रथिक से कहा; - "हे तात ! मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ।" -' तुम्हें कहाँ जाना है"-रथिक ने पूछा। -" मुझे पतनाश्रम जाना है।" -"चला, में भी पोतनाश्रम ही जा रहा हूँ। मेरे साथ चलो।" कुमार उसके साथ चल दिया। रथ में रथिक की पत्नी भी बैठो हुई थी। वल्कलचीरी उसे भी "हे तात ! हे तात !" सम्बोधन करने लगा। उसने पति से पूछा"यह कैसा मनुष्य है, जो मुझे भी ‘तात कहता है ?" - 'यह वनवास' ऋषि का पुत्र लगता है । इसे स्त्री-पुरुष का का भेद ज्ञात नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy