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________________ ४१२ Tee तीर्थंकर चरित्र - भाग ३ For PPFFFFFFFFF संकटापन्न स्थिति जानी। वह आकाश मार्ग से वैशाली आया और विद्या के बल से महाराजा चेटक और विशाला के नागरिकों को उड़ा कर एक पर्वत पर ले गया। चेटक नरेश इस जीवन से ऊब गये थे । उन्होंने मरने का निश्चय किया और अनशन कर के एक जला शय में कूद पड़े । उधर धरणंन्द्र का उपयोग इस ओर लगा। उसने साधर्मी जान वर चेटक नरेश को उठा कर अपने भवन में ले आया । वहाँ उन्होंने आलोचनादि किया ओर अरिहंतादि शरण का चिन्तन करते हुए धर्मध्यान युक्त आयु पूर्ण कर स्वर्ग गमन किया । कूणिक ने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार वंशाली का भंग कर के गधों से हल चलवाया और अपनी राजधानी लौट आया । Jain Education International कूणिक की मृत्यु और नरक गमन कालान्तर में भगवान् चम्पा नगरी पधारे। कूणिक भी वन्दना करने आया । उसने धर्मोपदेश सुनने के पश्चात् पूछा -- " भगवन् ! जो चक्रवर्ती महाराजा काम भोग का त्याग नहीं कर सकते और जीवन भर भोग में ही लुब्ध रहते हैं, उनकी कौन-सी गति होती है ?" == "वे नरक गति में जाते हैं । यथा बन्ध सातवीं नरक तक जा सकते हैं ' भगवान् ने कहा । 61 'मगवन् ! मेरी गति कैसी होगी " -- पुनः प्रश्न । "" छठी नरक 11 --भगवान् का उत्तर । " में सातवीं नरक में क्यों नहीं जा सकता - कूणिक का प्रश्न | -" तुम्हारा पापबन्ध उतना सबल नहीं है ।" 29 वह उपाय के आंगन में काम्रोत्सर्ग करती थी । उस समग्र 'पेढाल' विद्यासिद्ध परिव्राजक आकाशमार्ग से जा रहा था । वह ऐसे मनुष्य की खोज में था जो ब्रह्मचारिणी से उत्पन्न हो । ऐसे व्यक्ति को वह अपनी विद्या देना चाहता था । सुज्येष्ठा को देख कर उसकी आशा फलवती हुई। उसने धुंध छा कर अन्धेरा किया और सुज्येष्ठा को मूच्छित कर उसमें अपना वीर्य प्रक्षिप्त किया। उससे जन्मा पुत्र 'सत्यकी' कहलाया । योग्य वय में वह भी परिव्राजक हुआ । उसका पेढाल ने हरण किया और अपनी रोहिणी आदि विद्या दी। वह भी आकाशचारी हुआ । सुज्येष्ठा तो सती ही थी। भगवान् ने उसका सतीत्व स्वीकार किया । श्रावक के घर प्रसव हुआ । स्थानांग ९ में भावी तीर्थंकरों के नाम में -- “ सच्चइ णियंठीपुत्ते" की टीका में यह कथा है ! " For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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