________________
३९८
तीर्थङ्कर चरित्र भाग ३
मन राजगृह में नहीं लग रहा था । वह कहीं अन्यत्र जा कर रहना चाहता था। उसने वास्तु-विद्या में निपुण पुरुषों को बुला कर आदेश दिया - " तुम वन में जाओ और उत्तम भूमि देखो, जहाँ नूतनर नगर बसाया जा सके ।”
वास्तु विशेषज्ञ भूमि देखते हुए चले जा रहे थे । एक स्थान पर उन्होंने चम्पा का एक विशाल वृक्ष देखा । उन्हें विचार हुआ कि उद्यान में होने वाला यह वृक्ष इस वन में कैसे उत्पन्न हुआ ? न तो कोई इसका सिंचन करता है और न कोई जलाशय ही इसके निकट है, फिर भी यह सुरक्षित वृक्ष के समान हराभरा एवं शोभित है । इसकी शाखाएँ, प्रतिशाखाएँ, पत्र आदि सभी आश्चर्य जनक है। इसकी सुगन्ध कितनी मनोहर और दूर-दूर तक फैली हुई है । इस वृक्ष की छत्ररूप छाया के नीचे विश्राम करने की इच्छा होती है । नगर बसाने के लिये यह स्थान उत्तम है । वह नगर भी समृद्ध एवं रमणीय होगा । वास्तुशास्त्रियों ने अपना अभिप्राय राजा को दिया। राजा ने आज्ञा दी -" तत्काल कार्य प्रारम्भ करो । उस नगरी का नाम भी 'चम्पा' ही होगा ।"
थोड़े दिनों में नगरी का निर्माण हो गया । कूणिक नरेश अपनी राजधानी, कुटुम्ब - परिवार और राज्य के विविध कार्यालय चम्पा नगरी ले आये और राज्य का संचालन करने लगे ।
महायुद्ध का निमित्त + + पद्मावती का हठ
**
महाराजा श्रेणिक ने चिल्लना देवी के आत्मज और कूणिक के सगे छोटे भाई विहल्ल और वेहास को अठारह लड़ी वाला हार और सेचनक हस्ति दिया था और दिव्य कुण्डल और वस्त्र नन्दा देवी ने दिये थे । वे जब उस हार कुण्डल और वस्त्र पनि कर हाथी पर बैठ कर निकलते और उनकी रानियों के साथ जल-क्रीड़ा करते तो देवकुमार जैसे शोभायमान लगते । उनकी अद्भुत शोभा देख कर कूणिक नरेश की रानी पद्मावती के हृदय में ईर्षाग्नि प्रज्ज्वलित हो गई । उसने सोचा- " यह हार कुण्डल और वस्त्र तो मगध सम्राट (पति) के लिये ही उपयुक्त हो सकते हैं। यदि इन दिव्य अलंकारों और सेचनक हस्ति से मेरे पति वचित रहें, तो उनकी शोभा और प्रभाव हो क्या ? लोगों को आषित कौन करेगा - महाराजा या ये दोनों-अधिनस्थ ? "
* निरया बलिया सूत्र में केवल 'विल' का ही उल्लेख है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org