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________________ उदयन नरेश चरित्र किसी स्वरूपवान् युवती को देखता और यदि वह धनबल से प्राप्त हो सकतो, तो वह पच्छ मूल्य दे कर - करने और उनके साथ कोड़ा करता उस कुमारनन्दी सोनी के 'नागिल' नाम का प्रिय मित्र था। वह व्रतवारी श्रावक था। एक बार पल में रहने वाली दो व्यन्तर देवियों का पति देव अपनी देवियों के साथ नन्दीश्वर द्वीप जा रहा था कि मार्ग में ही उसका मरण हो गया। दोनों देवियों ने भावी पति के विषय में उपयोग लगाया। उन्होंने कुमरनन्दी स्वर्णकार के निकट आ कर अपने दिव्य रूप का प्रदर्शन किया। कुमारनन्दी मुग्ध हो गया। परिचय पूछने पर वे बोली "हम 'हासा' और 'प्रहासा' नाम की देवियाँ हैं । यदि तुम्हें हमारे साथ रमण करने की इच्छा हो, तो पंचशैल द्वीप आओ ।" इतना कह कर वे उड़ गई। कुमारनन्दी ने एक वृद्ध नाविक को कोटि द्रव्य दे कर उसकी नौका से प्रयाण किया। समुद्र में लम्बी यात्रा के बाद एक पर्वत दिखाई दिया । नाविक ने कुमारनन्दी से कहा - "समुद्र के किनारे पर्वत के निकट यह दिखाई देता है उसके नोचे होकर यह नौका जायगी। उस समय तुम वृक्ष की डाल पकड़ कर ऊपर चढ़ जाना। पंच पर्वत पर से तीन पाँच वाले भारण्ड पक्षी आकर इस वटवृक्ष पर रात को विश्राम करते हैं। तुम एक पक्षी का पाँव पकड़ कर रस्सी से अपने को उससे बाँध देना प्रातः यह पक्षी उड़ कर पंवरील जाएगा। उनके साथ तुम भी पहुँच जाओगे ।" स्वर्णकार ने ऐसा ही किया । स्वर्णकार को अपने निकट देख कर व्यस्तरिये प्रसन्न हुई अन्तरी ने कहा- तुम हमारी कामना करते 'हुए अग्नि प्रवेश कर मानव-देह नष्ट कर के देवगति प्राप्त करो। इसी से हमारा संयोग हो सकेगा । कामातुर स्वर्णकार को देवों ने स्वदेश पहुँचा दिया। वह आत्मघात कर व्यन्तर देव हुआ । अपने मित्र को विषयलोलुपता से मरते देख कर नागिल गणोपासक विरक्त हो गया और श्रमणप्रव्रज्या स्वीकार कर ली आराधक होकर अच्युत स्वर्ग में देव हुआ। उसने ज्ञानोपयोग से अपने पूर्व भव के मित्र स्वर्णकार को विद्युन्माली व्यन्तर देव के रूप में देखा । नन्दीश्वर द्वीप पर उत्सव में उसे ढोल बजाते देख कर उसने कहा - "तू मानव-भव हार गया, इसी का यह परिणाम है । देख, मैंने धर्म की आराधना की, तो मैं अच्युत स्वर्ग का देव हुआ है।" विद्युन्माली अब नागिल देव से अपने उद्धार का मार्ग पूछता है और नागिल देव उसे भ. महावीर स्वामी की गोशी चन्दनमय काष्ठ की प्रतिमा बनाने की सलाह देता है। प्रतिमा निर्माण और प्रतिष्ठा की कहानी भी लम्बी और रोचक है। यहाँ तक लिखा है कि-प्रभावती महारानी प्रतिमा के आगे नृत्य करती थी और उदयन नरेश वीणा बजाता था । एकबार नृत्य करती हुई रानी को राजा ने मस्तक रहित देखा। बाद में जिस दासी ने पूजा के समय धारण करने के श्वेत वस्त्र का कर दिये वे रानी को रक्तवर्णी दिखाई दिये। रानी ने क्रोधित हो कर दासी पर प्रहार किया और साधारण चोट से ही दासी मर गई। फिर वे रक्त वर्ण दिखाई देने वाले वस्त्र श्वेत दिखाई देने लगे। रानी को पश्चात्ताप हुआ। इन अनिष्ट सूचक निमित्तों से रानी सावधान हुई और संयम ग्रहण किया। छह महिने संयम पाल कर के प्रथम स्वर्ग में महद्धिक देव हुई। इस प्रभावती देव ने उदयन नृप को प्रतिबोध देने के प्रयत्न किये, तब वह श्रमणोपासक हुआ । X X Jain Education International ३८३ x x ग्रन्थकार का यह कथन विश्वास योग्य नहीं है । भगवती सूत्र में उदयन नरेश और प्रभावती देवी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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