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________________ ३५४ तीर्थकर चरित्र - भाग ३ गजचर्म परिधान, शरीर पर भस्म, वृषभ वाहन और पार्वती युक्त दृश्यमान थे। नागरिकजन सब दर्शनार्थ गये, परन्तु सुलसा तो अटल ही रही। चौथे दिन पूर्वदिया में स्वयं जिनेश्वर भगवान् का रूप धारण कर के भव्य समवसरण में, तीन छत्र युक्त सिहासन पर बैठा हुआ शोभित हुआ । नागरिकजन तो गये ही, परन्तु सुलसा तो फिर भी नहीं गई। जब अंबड ने सुलसा को नही देखा, तो किसी पुरुष को भेज कर प्रेरित करवाया। उसने आ कर सुलसा से कहा--"जिनेश्वर भगवंत पधारे हैं और सभी लोग भगवान् को वन्दन करने गये हैं । तुम क्यों नहीं गई ? चलो ऐसा अलभ्य अवसर मत खोओ ।" सुलसा ने कहा-'भाई ! ये भगवन् महावीर प्रभु नहीं है । वे तो चम्पा विराजते हैं ।" "अरे, ये तो पच्चीसवें तीर्थंकर हैं । तुम स्वयं चल कर दर्शन कर लो ' -- आगत • € + + +€ व्यक्ति ने कहा । " 'नहीं, ऐसा नहीं हो सकता । न तो पच्चीस तीर्थंकर होते हैं और न एक तीर्थकर के रहते, दूसरे हो सकते हैं। यह कोई मायावी पाखण्डी होगा, जो लोगों को ठगता है " -- सुलसा ने कहा । " अरे बहिन ! ऐसा नहीं बोलना चाहिये। इससे तीर्थंकर भगवान् की आशातना और धर्म की निन्दा होती है । तुम चल कर देखो तो सही । वहाँ चल कर देखने में हानि ही क्या है ? " " मैं ऐसे पाखण्डी का मुंह देखना भी नहीं चाहती । वह कभी ब्रह्मा बनता है, तो कभी विष्णु । अब जिनेश्वर का मायावी रूप बना कर बैठा है । ऐसे के निकट जाने से पाखण्ड का अनुमोदन होता है ।' सुलसा को अडिग जान कर अम्बड को निश्चय हो गया कि वास्तव में सुलसा सम्यक्त्व में सुदृढ़ एवं अटल है । भगवान् ने भरी सभा में इस सती की प्रशंसा की, यह उचित ही है । अपनी माया को समेट कर अम्बड ने नैषेधिकी बोलते हुए सुलसा के घर में प्रवेश किया । अम्बड को देख कर सुलसा उठी और स्वागत करती हुई बोली ; -- " हे धर्मबन्धु ! श्रावक श्रेष्ठ ! आपका स्वागत है ।" सुलसा ने स्वागत करके आसन प्रदान किया । Jain Education International " देवी ! तुम धन्य हो । इस संसार में सर्वश्रेष्ठ श्राविका तुम ही हो । भगवान् ने भरी सभा में तुम्हारी श्रद्धा की प्रशंसा की थी । ऐसी भाग्यशाली श्राविका और कोई जानने में नहीं आई ।" सुलसा हर्षित हुई और भगवान् की वन्दना की । तत्पश्चात् अम्बड ने For Private & Personal Use Only पूछा -- www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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