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________________ नन्द-मणिकार श्रेष्ठ का पत्न और मेंढ़क का उत्सान ३४६ .ककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककortant-ककककदमreppe भगवान् की भविष्य-वाणी से श्रेणिक प्रसन्न हुआ। नन्द-मणिकार श्रेष्टि का पतन और मेंढक का उत्थान राजगृह नगर में 'नन्द' नाम का मणिकार श्रप्ठि रहता था + । वह समृद्धिशाली एवं शक्तिमान था। भगवान् महावीर प्रभु राजगृह पधारे । महाराजा श्रणिक आदि भगवान् को वन्दन करने गए। नन्द मगिकार भी गया। भगवान् का धर्मोपदेश सुन कर नन्द श्रमणोपासक बना और धमसाधना करने लगा। भगवान् विहार कर अन्यत्र पधार गए। __ कालान्तर में साधु-साध्वियों के सत्संग सम्पर्क एवं स्वाध्याय के अभाव में नन्द की नष्ट हो गई। वह मिथ्यात्वी हा गया। एकदा ग्रीष्म ऋतु के ज्यष्ठ मास में वह तेले का तप कर के पौषधशाला में रहा था। वह भुख-प्यास से व्याकुल हो गया था। उसे अपना व्रत, बन्धन जैसा असह्य लग रहा था । व्रत-पालन की श्रद्धा ही नहीं रही थी। मन मर्यादा तोड़ चुका था । परन्तु काया से निर्वाह हो रहा था । उसे क्षुधा-पिपासा परीपह असह्य हो रहा था । वह सरावर को शीतलता एव जलक्र डा का सुख भोगने की मन में कल्पना करने लगा। उसने सोचा;-- __ “धन्य हैं वे महानुभाव, जिन्होंने नगर के बाहर जलाशय निर्माण कराये, बगीचे लगवाये और सभी प्रकार के सूख के साधन जटा कर सुख भोग रहे हैं और मानवजीवन को सफल बना रहे हैं । मैं भी प्रातःकाल होते ही महाराजाधिराज के समक्ष भेंट ले कर जाऊँ और नगर के बाहर भूमि प्राप्त कर के पुष्करणा का निर्माण करवाऊँ।" इस प्रकार निश्चय कर के प्रातःकाल होते हो उसने पौषध पाला, स्नानादि किया और मूल्यवान भेंट ले कर, स्वजनों के साथ महाराजा के पास गया। महाराज ने यथेच्छ भूमि प्रदान कर दो । उसने निष्णात शिल्पियों से एक चोकोर पुष्करणी का निर्माण कराया। उसमें सुस्वादु शीतल जल भर गया। पानी पर कमल के पुष्प निकल आये। पुष्करणी दर्शनीय हो गई। उसके चारों ओर बगीचा लगाया गया। जिनमें भाँति-भाँति की सुन्दर पुष्पलताएँ पौधे आदि लहरा रहे थे। पुष्पकरिणी के पूर्व की ओर के उद्यान में एक भव्य चित्रसभा बनवाई, जिसमें मोहक आल्हादक एवं आकर्षक चित्र, फलक और ___ + ज्ञातासूत्र स्थित इस चरित्र को ग्रन्थकारों ने क्यों छोड़ दिया ? कदाचित् इस ओर दृष्टि नहीं गई हो? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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