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________________ तीर्थंकर चरित्र भाग ३ နယူနန်နနနနနနနနနနနနေနီနီနနနနနနနနန कर रोने लगा। आवेग निकलने के बाद उसने मित्र से बिछुड़ने के बाद की घटना का वर्णन करते हुए कहा; “मैं आपको वटवृक्ष के नीचे छोड़ कर, आपके लिए पानी लेने गया । एक सरोवर में से कमलपत्र तोड़ कर पात्र बनाया और पानी भर कर आपके पास आ ही रहा था कि यमदूतों के समान कई सुभटों ने मुझे घेर लिया और पूछने लगे;--" बता, ब्रह्मदत्त कहाँ है ?" मैने कहा--"एक सिंह ने उसे मार डाला । सिंह ने जब उस पर छलांग लगा कर दबोचा, तो मैं भयभीत हो कर भाग गया। अब मैं अकेला ही भटक रहा हूँ।" उन्होंने मेरी बात पर विश्वास नहीं किया और मुझे पीटने लगे । फिर उनके मुखिया ने मुझसे कहा--" बता, किस स्थान पर उसे सिंह ने मारा । हम वहाँ उसकी हड्डियाँ और कपड़े देखेंगे।" मुझे आपको सावधान करना था। इसलिये मैं पहले तो आपकी दिशा में ही उन्हें लाया, फिर आपको सुनाने के लिये जोर से बोला--"सुभटराज ! इधर चलो । ब्रह्मदत्त को सिंह ने मार डाला, वह स्थान इस दिशा में है ।" आपको दूर चले जाने का अवसर प्राप्त हो, इसलिये मैं उन्हें दूर तक ले गया और आगे रुक कर बोला--' मैं वह स्थान भूल गया हूँ। भय से भागने में मुझे स्थान का ध्यान नहीं रहा।" उन लोगों ने मुझे झूठा समझ कर बहुत पोटा । मैने तपस्वी की दी हुई गुटिका मुंह में रख ली। उसका प्रभाव मुझ पर होने लगा और मैं संज्ञाशून्य-मूर्दे के समान हो गया। सुभटों ने मुझे मृत समझा और वे वहाँ से चल दिये। उनके जाने के कुछ काल पश्चात् मैने वह गुटिका मुंह में से निकाली। इससे मेरे शरीर में पुनः स्फूर्ति बढ़ने लगी। मार की पीड़ा से मेरा अंग-अंग टूटा जा रहा था, परन्तु मैं उठा और शनैः-शनैः चलने लगा। दीघ का मन्त्री-परिवार पर अत्याचार मैं आपकी खोज में भटकता हुआ एक गांव के निकट आया । वहाँ एक तपस्वी दिखाई दिये । मैने उन्हें विनयपूर्वक प्रणाम किया। तपस्वी ने मुझे देखते ही कहा-- "वत्स वरधनु ! मैं तुम्हारे पिता मन्त्रीवर धनु का मित्र हूँ। बताओ, तुम्हारा मित्र ब्रह्मदत्त कहाँ है ?" "पूज्यवर ! मैं उसी की खोज में भटक रहा हूँ। परन्तु अभी तक पता नहीं चल सका।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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