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गणधर भगवान् ने क्षमापना की
'भगवन् ! यदि जिन-प्रवचन में सत्य कथन का प्रायश्चित्त नहीं होता, तो आप ही अपने कथन की आलोचना कर के तप रूप प्रायश्चित्त स्वीकार करें " -- आनन्द ने निर्भयता पूर्वक स्पष्ट कहा ।
गणधर भगवान् ने क्षमापना की
आनन्द श्रमणोपासक की बात सुन कर श्री गौतम स्वामीजी को सन्देह उत्पन्न हुआ | उन्हें भगवान् महावीर प्रभु से निर्णय लेने की इच्छा हुई। वे वहाँ से चल कर भगवान् के समीप आये । गमनागमन का प्रतिक्रमण किया, आहार पानी प्राप्त करने सम्बन्धी आलोचना की और आहार- पानी दिखाया। तत्पश्चात् वन्दना नमस्कार कर आनन्द श्रमणोपासक सम्बन्धी प्रसंग निवेदन कर पूछा - " भगवन् ! उस प्रसंग की आलोचना आनन्द को करनी चाहिये, या मुझे ? "
भगवान् ने कहा;
-- " गौतम ! तुम स्वयं आलोचना कर के प्रायश्चित्त लो । आनन्द सच्चा है । तुम उसके समीप जा कर उससे इस प्रसंग के लिए क्षमा याचना करो। " भगवान् का निर्णय गौतम स्वामी ने "तहत्ति" कह कर किया । लगे हुए दोष की आलोचना की और तप स्वीकार कर करने गये ।
विनय पूर्वक स्वीकार आनन्द से क्षमा याचना
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आनन्द श्रमणोपासक बीस वर्ष की श्रमणोपासक पर्याय एवं एक मास का संथारासंलेखना का पालन कर, मनुष्यायु पूर्ण होने पर सोधर्म स्वर्ग में देव हुआ। वहाँ उसकी स्थिति चार पल्योपम की है । देवाय पूर्ण कर वह महाविदेह क्षेत्र में मनुष्य रूप में उत्पन्न होगा और श्रमण- प्रव्रज्या स्वीकार कर मुक्ति प्राप्त करेगा ।
श्रमणोपासक कामदेव को देव ने घोर उपसर्ग दिया
चम्पा नगरी में 'कामदेव' गाथापति रहता था। 'भद्रा' उसकी पत्नी थी। कामदेव के पास छह कोटि स्वर्णमुद्रा भण्डार में थी, छह कोटि व्यापार में और छह कोटि की अन्य वस्तुएँ थी । साठ हजार गायों के छड़ गोवर्ग थे। कामदेव ने भगवान् महावीर का धर्मोपदेश सुन कर आनन्द के समान श्रावक धर्म स्वीकार किया। कालान्तर में ज्येष्ठ पुत्र को गृहभार
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