SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीर्थंकर चरित्र भाग ३ ककपककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककका बिना सोचे-समझे कार्य करने से फिर पश्चात्ताप करना पड़ता है।" वरधनु की बात सुन विद्वान ब्राह्मण बोला;-- "महाशय ! मेरी गुणवंती प्रिय पुत्री के पति ये महानुभाव ही हैं । मुझे एक निष्णात् भविष्यवेत्ता ने कहा था कि तुम्हारे घर वेश बदले हुए भोजन के लिये आने वाले भव्य-पुरुष के वक्षस्थल पर श्रीवत्स का चिन्ह होगा। वही तुम्हारी पुत्री के पति होंगे और वह पुरुष महान् भाग्यशाली चक्रवर्ती सम्राट होगा। तुम उसी को अपनी पुत्री व्याह देना । भविष्यवेत्ता का वचन आज फलित हो गया। उसमे जिस महानुभाव को लक्ष्य कर कहा था, वे आप ही हैं। आपमें वे सारे लक्षण स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं जो चक्रवर्ती में होना चाहिये।" ब्राह्मण ने ब्रह्मदत्त के साथ अपनी पुत्री के विधिवत् लग्न कर दिये । भाग्यशाली के लिये अनायास ही इच्छित भोग की प्राप्ति हो जाती है । वह रात्रि बन्धुमती के साथ व्यतीत कर और उसे पुनः शीघ्र लौट कर ले जाने का आश्वासन दे कर, दूसरे ही दिन दोनों मित्र वहाँ से आगे चले। वरधनु शत्रुओं के बन्धन में दोनों मित्रों ने चलते-चलते एक ग्राम में प्रवेश किया। वहाँ उन्हें ज्ञात हुआ कि "राजा दीर्घ को उनके निकल भागने का निश्चय हो गया है और उनके सुभट उन दोनों की खोज में इधर-उधर घूम रहे हैं। उन सैनिकों ने उनके सभी मार्ग रोक लिये हैं।" वे दोनों मित्र मार्ग छोड़ कर और उन्मार्ग पर चल कर एक अटवी में घुसे । उस अटवी में अनेक भयंकर एवं क्रूर पशु रहते थे । ब्रह्मदत्त को असह्य प्यास लगी । उसे एक वृक्ष की छाया में बिठा कर, वरधनु पानी की खोज में चला । कुछ दूर निकला होगा कि राज्यसैनिकों ने उसे देख लिया और तत्काल घेरा डाल कर पकड़ लिया। सैनिकों ने उसे पहिचान भी लिया। वरधनु समझ गया कि वह शत्रुओं के बन्धन में बंध चुका है। उसने मित्र ब्रह्मदत्त को सावधान करने के लिए उच्च स्वर से चिल्ला कर, मित्र को पलायन कर जाने का संकेत किया। वरधनु का संकेत पाते ही कुमार सावधान हो गया । अपनी तीव्र प्यास को भूल कर वह संकेत की विपरीत दिशा की ओर शीघ्रतापूर्वक चल दियाएक अटवी से दूसरी में यों भटकते हुए और निरस तथा विरस फल खाते हुए उसने दो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy