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________________ तीर्थंकर चरित्र - भा. ३ - पूज्य ! आप का निरन्तर स्मरण करने वाली मेरी माता आपके इस नगर के बाहर उद्यान में है ।" अभय के शब्दों ने महाराजा श्रेणिक पर आनन्द की वर्षा कर दी। वह हर्षाविंग से भर उठा। उसने महारानी नन्दा को पूर्ण सम्मान के साथ राज्य - महालय में लाने की ज्ञा दी। राज्य के सर्वोत्कृष्ट सम्मान के प्रतीक हाथी, घोड़े, वादिन्त्र, छत्र-चामरादि युक्त सभी सामग्री ले कर अभयकुमार उद्यान में आया। महाराजा भी उत्साहपूर्वक उद्यान में पहुँचे। उन्होंने देखा -- नन्दा वियोग दुःख से दुर्बल, निस्तेज और शरीर शुश्रूषा से वंचित म्लान वदन बैठी है । राजा, महारानी के दुःख से दुःखी हुआ । रानी नन्दा को पतिदर्शन से अत्यंत हर्ष हुआ। उस हर्ष ने उसकी म्लानता दूर कर दी । प्रसन्नता ने उत्तम रसायन का काम किया। बिना किसी उपचार के ही उसमें शक्ति उत्पन्न कर दी । वह उठी और पति को प्रणाम किया। महाराजा ने पूर्ण स्नेह एवम् सम्मान के साथ पत्नी का राज्यमहालय में प्रवेश कराया और 'महारानी' पद प्रदान किया। अभयकुमार का अपनी बहिन सुसेना की पुत्री के साथ लग्न किया। उसे महामन्त्री पद और आधे राज्य की आय प्रदान की । अभयकुमार तो अपने को मनुराजा का एक सेवक ही मानता रहा। थोड़े ही समय में उसने अपने बुद्धिचातुर्य से बड़े पन्त राजाओं को वश में कर लिया । महाराजा चेटक की सात पुत्रियां I उस समय वैशाली नगरी की विशालता सर्वत्र प्रसिद्ध थी । महाराजा " चेटक ' वहाँ के अधिपति थे । वे निर्ग्रथोपासक थे। उनके " पृथा" नामकी रानी की कुक्षि से सात पुत्रियाँ जन्मी थी। उनका नाम अनुक्रम से--प्रभावती, पद्मावती, मृगावती, शिवा, ज्येष्ठा, सुज्येष्ठा और चिल्लना था। महाराजा चेटक ने चतुर्थ व्रत की मर्यादा में अपने पुत्र पुत्री का विवाह करने का भी त्याग कर दिया था। इसलिये उन्होंने स्वयं अपनी पुत्रियों का सम्बन्ध किसी के साथ नहीं किया, महारानी पृथा देवी ने ही प्रयत्न कर के सम्बन्ध किये । उन्होने सम्बन्ध करने के पूर्व महाराजा को वर के विषय में पूरी जानकारी दी और उनकी कोई आपत्ति नहीं होने पर पाँच पुत्रियों के सम्बन्ध कर के लग्न कर दिये । यथा- २४४ १ प्रभावती के लग्न 'वितभय नगर' के अधिपति 'उदायन नरेश' के साथ किये । २ पद्मावती 'चम्पा नगरी' के शासक महाराजा 'दधिवाहन' को दी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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