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तीर्थकर चरित्र-भाग ३ ककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककन
और बिजलियाँ निकलने लगी। चमरेन्द्र इस महास्त्र को अपनी ओर आता हुआ देख कर डरा, भयभीत हुआ । उसके मन में विचार हुआ--"यदि ऐसा महास्त्र मेरे पास होता, तो कितना अच्छा होता ?" भयभीत चमरेन्द्र नीचा सिर और ऊपर पाँव किये हुए नीचे की ओर भागा । उसका मुकुट आदि वहीं गिर गये। आगे चमरेन्द्र और पीछे वज्र।
__ शकेन्द्र को विचार हुआ कि--'चमर यहाँ आया किस प्रकार ? इसकी इतनी शक्ति नहीं कि बिना किसी महाशक्ति का आश्रय लिये, वह यहाँ तक आ सके।" ज्ञानोपयोग से उसने जान लिया कि भगवान् महावीर का आश्रय लेकर ही चमरेन्द्र यहाँ आया है और यहाँ से लौट कर वह भगवान् की शरण में ही जायगा।" इतना विचार आते ही शकेन्द्र के हृदय में आघात लगा। सहसा उसके उद्गार निकल पड़े;--
“हाय ! मैने यह क्या कर डाला । मैने ऐसा दुष्कृत्य क्यों किया ? हाय ! मैं मारा गया । मेरे फेंके हुए वज्र से जिनेश्वर भगवान् की महान् आशातना होगी।"
वह तत्काल वज्र के पीछे भागा। आगे चमरेन्द्र, पीछे वज्र और उसके पीछे शकेन्द्र ।
चमरेन्द्र सीधा अशोकवन में भगवान महावीर के समीप आया और वैक्रिय से शरीर संकुचित कर कुंथुए के समान बना कर भगवान् के पाँवों में छुपते हुए बोला-- "भगवन् ! मैं आपकी शरण में आया हूँ। आप ही मेरे रक्षक हैं।"
भगवान् से चार अंगुल दूर रहते ही शक्रेन्द्र ने अपने वज्र को पकड़ लिया । वज्र को झपट कर पकड़ते समय वायुवेग से भगवान् के बाल हिलने लगे।
__शकेन्द्र ने भगवान् को वन्दन-नमस्कार किया और अनजान में हुए अपराध की क्षमा माँगी। फिर चमरेन्द्र से बोला;--
"असुरेन्द्र ! भगवान् महावीर के प्रभाव से आज तू मेरे कोप से बच गया है । अब तू प्रसन्नतापूर्वक जा । मेरी ओर से अब तुझे किसी प्रकार का भय नहीं रहा।"
भगवान् को वन्दना-नमस्कार करके शकेन्द्र और चमरेन्द्र अपने-अपने स्थान गये ।
चमरेन्द्र की पश्चात्ताप पूर्ण प्रार्थना शक्रेन्द्र के चले जाने के बाद चमरेन्द्र प्रभु के चरणों में से निकला और प्रभु को नमस्कार कर के विनीत स्वर में कहने लगा;
"हे भगवन् ! आप मेरे जीवन-प्रदाता हैं । आपके श्रीचरणों का तो इतना महान् प्रभाव है कि जीव जन्म-मरण से ही मुक्त हो जाता है।"
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