________________
गोशालक का परिवर्तन
कितने दिन की तपस्या है। उसे अपना धन्धा कर के पेट भराई करनी पड़ती थी। वह नगर में जाता और अपना नित्यनिर्धारित कार्य करता । भगवान् पारणे के समय चुपचाप निकल जाते । उस समय गोशालक कहीं चित्रपट दिखा कर अपना धन्धा करता होता । दिव्य ध्वनि सुनने से उसे भगवान् के पारणे का पता चलता ।
सिद्धार्थ व्यन्तर निकट ही तुझे खट्टा कोद्रव और कुर मिलेगा
कार्तिक पूर्णिमा के दिन गोशालक ने भगवान् के ज्ञान की परीक्षा करने के लिये पूछा - " भगवन् ! आज तो सभी जगह कार्तिक महोत्सव हो रहा है । इसलिये सभी घरों में मिष्ठान बनेंगे । बताइये कि मुझे आज भिक्षा में क्या मिलेगा ? " था । उसने भगवान् की ओर से उत्तर दिया- " आज और दक्षिणा में एक खोटा रुप्यक मिलेगा ।" गोशालक प्रातःकाल से ही भिक्षा के लिए भटकने लगा । परन्तु संध्या तक उसे कहीं से भी भोजन नहीं मिला। अन्त में एक सेवक ने उसे बिगड़ कर खट्टे बने हुए कोद्रव और कुर दिये, जिसे भूख से व्याकुल बने हुए गोशालक ने खाये । उसे एक रुप्यक दक्षिणा में भी मिला, जो खोटा निकला । गोशालक ने इस घटना पर से निश्चय किया कि 'जैसी भवितयता होती है, वैसा ही होता है । पुरुषार्थ से कुछ भी नहीं होता । आज सभी जगह मिष्ठान्न बना और मैने दिनभर प्रयत्न किया, किन्तु मेरे भाग्य में मिष्ठान्न नहीं था, सो नहीं मिला । मिला वही जो भाग्य में था और जैपा गुरुदेव ने बताया था ।" इस घटना ने उसे एकान्त नियतिवादी बना दिया ।
"
Jain Education International
१६९
गोशालक का परिवर्त्तन
गोशालक भटकता हुआ संध्याकाल होने पर अपने स्थान पर आया । प्रभु को वहाँ नहीं देख कर उसने आसपास के लोगों से पूछा, किन्तु पता नहीं लगा । वह दिनभर खोज करता रहा । एक महान् प्रभावशाली चमत्कारिक गुरु से वंचित होना उसे आघातकारक लगा । उसने सोचा- 'मुझे अब गुरु के अनुरूप बन जाना चाहिये । यदि में आजीविका का काम छोड़ कर गुरु के अनुरूप बन जाता तो वे मुझे अस्वीकार नहीं करते ।' उसने संकल्प किया कि अब में उन महात्मा के अनुकूल ही बनूंगा और उनको प्राप्त कर के ही रहूँगा ।' उसने मस्तक के बालों का मुण्डन करवाया। चित्रपट आदि उपकरणों का त्याग किया और वस्त्र तक छोड़ कर कर निकल गया । कोल्लाक ग्राम में प्रवेश करते ही लोगों के मुँह से प्रभु की और प्रभु को दान देने वाले बहुल ब्राह्मण की प्रशंसा सुनी तो उसे निश्चय
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org